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काले रंग को कोई फर्क नही पड़ता

काला रंग

काला हूँ,काला रहूँगा
कितना भी रंग मिला दो
मुझको कोई फर्क नही पड़ता।
सूरज,चाँद, प्रकृति का असर
कभी, मुझ पर नही होता।
पक्का पर्मानेंट रंग मेरा
अपने रंग मे रंग सकता हूँ
सबको काला कर सकता हूँ
ये भी कुदरत का करिश्मा है
कुदरत भी काले रंग में
धरती पर जन्म लेता है
काला रंग हूँ,काला रहूँगा।।
           कवि मस्ताना 

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