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क्या जला दिया

क्या जला दिया

दिये तो बहुत थे पर,
जल कुछ और रहा था।
अंधरे में रोशनी,
वो ही कर रहा था।
अब कैसे पता करे हम?

जिक्र जब भी उनका, करते अपने दिल मे।
याद कुछ और ही,
दिला देता ये दिल ।
अब क्या कहोगे इसे,
तुम कुछ तो बता दो।
बात जो पुरानी है उसे,
नई एक बार कर दो।।

रास्ते बहुत लंबे है ।
पर मंजिले पास है।
चलने वालों को सिर्फ,
सही मंजिल का पता है।।

राही ढूंढ ही लेता है ।
एक दिन अपने आप को।
क्या था उसके दिल मे।
और क्या उसे चाह थी।।

जो मिला क्या,
वो काफी है। 
या उसकी कुछ,
और ही तलाश है।
बिक जाते है,
लोगो दिलके आरमा ।
खरीदने वाले,
बहुत तैयार है।।

किस किस को,
दोष दे हम।
अब सभी तो,
अपने जो है ।
तभी तो सज जाते है,
लोगो के दिलो में सपने।।

छोड़ देते है,
वो भी साथ।
जो कभी अपने,
हुआ करते थे ।
ऐसी क्या गलती की,
जो चले गए छोड़  मझधार में,
छोड़ गए मझधार में...।।

संजय जैन(मुम्बई)

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