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पगडण्डी की राह आज तक ....

पगडण्डी की राह आज तक 


सामयिक कलम तुम और बोल 
निःसंकोच कंठ तुम और खोल 

सारा खेल तो तुम देख चुकी है
किसकी थाली में रोटी रूखी है 
हालात किसकी है डांवाडोल ।

दस दस ईंटों की बोझ वह ढोती 
आधी रोटी खा खाकर वह सोती 
लिया जीवन है तुमने जो तोल ।

पगडण्डी की राह आज तक 
नहीं उठी आवाज आज तक 
समय पर वोट मांगा अनमोल ।

बूढ़ा हो चला बरगद गाँव का 
दर्द जाता नहीं थका पाँव का 
विवाह में बजता चमरूआ ढोल। 

विद्या शंकर विद्यार्थी 

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