गीत
लोग छेड़ते हैं तो बदला है हम लेते हैं नहीं
तुम गर बात करो तो मुझसे खुल कर करो
दूरियाँ छोड़ कर नजदिकियाँ भूल कर करो
दूरियाँ देती है कसक दिल में अपनी है मानो
रिश्ते बंधते हैं जमाने में बातें कबूल कर करो
आहत होती है जिंदगी तो अश्क बहते हैं जानो
हम हैं शायर, शायरी से मेरी खुल कर करो
लोग छेड़ते हैं तो बदला है हम लेते हैं नहीं
हम हैं राही जो भी बातें हैं वो कबूल कर करो।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रोहतास बिहार
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