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संयुक्त परिवार ही भारतीय संस्कृति हैं... Snyukt pariwar hi bharatiy snskriti h

                संयुक्त परिवार ही है भारतीय संस्कृति

आज हम सब जहाँ पर खड़े होकर अपने लोगों और परिवार वालों को देख रहे हैं तो कुछ खास नजर ही नहीं आ रहा है। हो सकता है कि ये हमारे मन का वहम हो,परन्तु अपनापन और भाईचारे वाला वो माहौल बदल-सा रहा है और लोगों ने अकेलेपन और अपने परिवार तक को खुद को सीमित कर लिया है। यानी मैं  और मेरे बीबी-बच्चे,बस यहाँ तक ही अब लोगों की सोच बची है। इसका क्या कारण है,समझ से बाहर है,क्योंकि लोग अपने माँ-बाप को भी अपने से दूर कर रहे हैं। क्या यही संस्कार-संस्कृति है कि जिसने इन्हें पैदा किया,वो भी इस दिन के लिए कि एक दिन तुम बड़े होकर हमसे ही मुंह फेर लोगे। भारतीय संस्कृति तो ये नहीं सिखाती है,तो फिर किस दिशा की ओर हमारे बच्चे आज कदम बड़ा रहे हैं। हो सकता है कि जो लोग माँ-बाप से अपना मुंह फेर रहे हैं,कल को उनके भी बच्चे वो ही करेंगे या उससे भी दो कदम आगे बढ़कर वो अपने माँ-बाप से और भी बुरा व्यवहार करेंगे तो क्या ये सब ठीक है ? आजकल के बच्चों को ये बात भली-भाँति समझना चाहिए कि हमारे माँ-बाप ने हमें कितने जतन से पाला-पोसा है,तो हमारा भी उनके प्रति कुछ तो फर्ज बनता है। हम उनकी सेवा करें और उन्हें वो सब कुछ दें,जिसके वो असली हकदार हैं। यदि आप अपने माँ-बाप को थोड़ी-सी भी ख़ुशी दोगे तो पूरा जीवन संवर-संभल जाएगा,क्योंकि माँ-बाप की दुआओं और आशीर्वाद में वो शक्ति होती है कि उसे कोई भी नहीं काट सकता। सबको याद होगा कि,दुर्योधन को उसकी माँ ने अपने आशीर्वाद से पूरा वज्र का कर दिया था,ये जानते हुए भी कि वो गलत है। फिर भी माँ-बाप ने अपने बच्चे का साथ दिया था। सभ्यता,संस्कार और संस्कृति से विमुख हो रहे आजकल के बच्चों को अपने दोस्तों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा है,जबकि अपने भाई तथा परिवारवालों पर नहीं,जो बहुत बड़ी गलतफहमी है। दरअसल वक्त पर अपने ही लोग काम आते हैं,दोस्त नहीं,ये हम अनुभव से कह रहे हैं। आजकल की दोस्ती तो सिर्फ पैसे तक ही सीमित है। जब तक आपकी जेब में पैसे हैं,तब तक सभी दोस्त आपके साथ हैं,परन्तु जैसे ही आप मुसीबत में आ जाओगे तो सिर्फ १० फीसदी दोस्त ही आपका साथ देंगे,परन्तु आपके अपने तो आपका १०० प्रतिशत साथ देंगे। यदि ये तथ्य गलत है तो कभी अपने जीवन में आजमाकर देख लेना। संयुक्त परिवार हमारी वो ताकत है,जिसके आगे कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। यही बात भारतीय संस्कृति की धरोहर है,जिसको हम सब समय के साथ मिटाते जा रहे हैं,और अपने को सिर्फ अपनों तक सीमित करते जा रहे हैं। सिर्फ स्वार्थ के लिए अपनों का साथ मत छोड़िए,बल्कि यह समय तो अपनों से जुड़े रहने का है। आज हमारे और देश के जो हालात हैं,उसमें हम सबका एकजुट रहना ही सही कदम है,वर्ना लोग कहीं के नहीं रहेंगे। आप अपनी मूल शक्ति को पहचानो,और अपने परिवारवालों से मिलकर आगे बढ़ो,तो निश्चित ही अपने जीवन में सफलता पाओगे। परिवार की छोटी-मोटी समस्याओं को परिवार से अलग होने का कारण मत बनाओ। ये सब तो जीवन में चलता ही रहता है। आज का ये वातावरण देखकर बहुत ही दुःख होता है कि पढ़े-लिखे लोगों की ये मानसिकता है,तो हम बिना पढ़े या कम पढ़े- लिखे लोग ही ठीक थे। कम से कम अपने परिवारवालों के साथ तो थे,और वो सब भी हमारे साथ थे,तभी तो लोगों ने अपने चार-चार या पाँच-पाँच बच्चों को पाला-पोसा और इस काबिल बनाया कि वो अपनी खुद की एक पहचान देश और समाज में बना सके,परन्तु ये कभी भी नहीं चाहा था कि वो अपनों को ही भूल जाए। ये उन्होंने कहाँ से सीखा,और जो भी आजकल के बच्चे अपने बुजुर्ग माँ-बाप के साथ कर रहे हैं,वो बहुत ही गलत है। उन्हें अनाथ आश्रम या वृद्धाश्रम में छोड़कर आ जाते हैं और बड़े ही गौरव से कहते हैं कि,पापा जी या मम्मी जी हम आपको महीने में मिलने आते रहेंगे,और कुछ पैसे भी देते रहेंगे। क्या वो इन सबके भूखे हैं ? जिस माँ ने तुम्हें नौ महीने अपने पेट में रखा और न जाने कितने कष्ट सहे,तुम्हें जन्म देने -फिर पालने में अपने मुंह का निवाला तुम्हें खिलाया तो क्या इस दिन के लिए ……नहीं! वो आपसे सिर्फ अपनापन और प्यार-आदर भाव ही चाहते हैं,न कि तुम्हारे रुपए-पैसे या तुम लोगों के जीवन में दखल अंदाजी। वो ये कभी नहीं कहेंगे कि तुम ये मत करो या ये काम करो, वो सिर्फ आपका भला ही चाहेंगे, इसलिए अपने माँ-बाप और परिवारवालों की कदर करो। वो हमेशा आपके काम आएंगे, न कि आजकल के स्वार्थी दोस्त। सयुंक्त परिवार की महत्ता को समझिए और फिर ठन्डे मन से विचार कीजिए कि सही और गलत क्या है।
निष्कर्ष : दोस्तो उपरोक्त लेख से हमने आप सभी को ये बताने का प्रयास किया है कि हमारे सगे संबंधी ही हमारे अपने होते है और वो ही हमारे जीवन मे सदा काम आते है ।

संजय जैन (मुम्बई)

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