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हिंदी से ही नाम सलामत हैं... Hindi se hi naam Salamat h

हिन्दी से  ही  नाम सलामत  है।

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ऋण चढ़ा है मुझ पर हिन्दी का,
बस  इसे  उतारने की चाहत है।
मात  शारदे  मेरी बिनती सुनना,
मां  चरणों  में  यही  इबादत है।
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हिन्दी  का  हूं  मैं  एक  सिपाही,
मेरी हिन्दी ही  एक सहादत  है।
अमृत पान की इच्छा क्या करना,
हिन्दी से  ही  नाम  सलामत  है।
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मैं  राष्ट्र का  एक  छोटा  तिनका,
मुझमें  देश  भक्ति की आदत है।
हिन्दी जर्रा-जर्रा खुद रहा पुकार,
बस अंसत की  एक कहावत है।
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नित  प्यारे  शब्दों  की गरिमा ही,
हिन्दी  की सबसे बड़ी इमारत है।
लिखती  है  सब कुछ मात शारदे,
'साधक'कलम ही नेक अमानत है।
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स्वरचित/मौलिक रचना
                   .....प्रमोद साधक

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