हिन्दी से ही नाम सलामत है।
*************************ऋण चढ़ा है मुझ पर हिन्दी का,
बस इसे उतारने की चाहत है।
मात शारदे मेरी बिनती सुनना,
मां चरणों में यही इबादत है।
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हिन्दी का हूं मैं एक सिपाही,
मेरी हिन्दी ही एक सहादत है।
अमृत पान की इच्छा क्या करना,
हिन्दी से ही नाम सलामत है।
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मैं राष्ट्र का एक छोटा तिनका,
मुझमें देश भक्ति की आदत है।
हिन्दी जर्रा-जर्रा खुद रहा पुकार,
बस अंसत की एक कहावत है।
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नित प्यारे शब्दों की गरिमा ही,
हिन्दी की सबसे बड़ी इमारत है।
लिखती है सब कुछ मात शारदे,
'साधक'कलम ही नेक अमानत है।
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स्वरचित/मौलिक रचना
.....प्रमोद साधक
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