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खण्डहर... Khndahar

~~~~खंडहर~~~~

रौनको में चलती है भीड़ में दरकती है,
दुनिया कभी खंडहरों में झाॅकती नहीं ,
झाॅके तो शायद दबे हुए अवशेष ही मिले , 
बीते हुए वक्त के दरवेश ही मिले ,
दूर तक फैले सन्नाटे में रौनक छुपी मिले,
 नई खड़ी इमारतों की नींव ही मिले,
 कुछ निर्दोष मानवता के अंश ही मिले , 
सोनी महिवाल हीर रांझा के संदेश ही मिले , 
जाते ही नहीं शायद लोग खंडहरों में यूं ,
बीते हुए पलों के कुछ गुनाह खड़े मिले , 
इंसानियत को काटते खंजर पड़े मिले ,
 रूह को धिक्कारता कोई ब॓या मिले ,
 यूं ही दुनिया खंडहरों में कभी ,
झाॅकती नहीं है शायद !!!!!

                        (चंद साॅसे )
                       ✍🏻कमल गर्ग  
     असोला फतेहपुर बेरी ,
     नई दिल्ली- 74,

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