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मैं मजदूर हूँ.. main majdoor hun


मैं मजदूर हुंँ

मैं मजदूर हुंँ
मैं नव निमॉण का काम करता हुंँ
पुरातन को जर-जर झर- झर तोड़
उत्थान का का काम करता हुंँ
मैं तपती धुप में, मुसलेदार वारिश में
और हाड़ कपाने वाली ठण्डी में
अडिग रह काम करता हुंँ 
मानव हुंँ इसलिए मानवता की
भलाई का काम करता हुंँ
मैं विश्वास का काम करता हुंँ
न कि घात का  लोग फिर भी मोल लगाते
मेंरे काम का मेरी जात के साथ 
मेरी तो एक ही जात
मैं मजदूर हुंँ, मैं मजबूर हुंँ
हँसी उड़ाते मेंरी मजदूरी, मजबूरी पर
सुविधा ,सम्पन्न पुँजी के मालिक उस 
छत के निचे जिसे बनाया, तरासा
मेरी ईमानदारी ने  
पर ईमान नही बचा हैं इनके पास
बेच आए हैं जिसे बैमान की बाजारी में
चंद खुशिया शान-शौकत खरीद लाए हैं
बड़ी ही मक्कारी में
लाचारी में ही सोचता हुंँ अच्छा हैं
मैं मजदूर हुंँ
सियासी दाव पेचो, मित्थ्या विचारो से
मैं दुर  हुंँ
सत्य-शिवम्-सुन्दरम् के औजारो से
मैं नई सभ्यता-संस्कृति की नीव गढता हुंँ
और जमाने की रुख को बदलने का 
काम करता हुंँ
मेरे काम से मैं बदनाम हुंँ
मेरे नाम से मैं बदनाम हुंँ
फिर भी उत्थान मैं करता हुंँ
पतन मैं सहता हुंँ
मैं मजदूर हुंँ इसलिए कुछ न कहता हुंँ
केवल सहता हुंँ ओर सहता हुंँ। 

रचनाकार
विनोद कुमार रजक

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