शिक्षक
कोमल भावों को,चिर -परिचित विचारों को।
दे दी मैंने एक बानी,
जिसे कहते हैं हम सभी गुरुबानी।
उनके हर एक उच्चारण से,
बहते हों चारों वेदों की प्रभामयी आभा ।
उनके हर एक आहट से,
गूँजें अमृतमयी अजस्र धारा।
अज्ञान पथ पर हों,
जिनके ज्ञान साग़र के दर्शन...
अक्षुण्ण हो वह समूह,
जिसमें बहती रहे ज्ञान की कलकल धारा।
कुंठित विचारों को दें,
वो एक नयी दिशा...
जिसमें प्रकाशस्तंभ सी,
उत्कल,अविरल,देदीप्यमान हो प्रभा।
आडंबर के समस्त शिख़रों को,
दें एक विध्वंसक सीख....
शब्द़ बाण से करें सर्वनाश,
उन कलुषों को जिनके समक्ष हैं नतमस्तक।
धरा है धीर धारण कर,
हम आपके आशीर्वचनों से करें...
स्वयं के व्यवधानों का,
सकारण ऐसा निवारण जिससे मिले आत्मसंतुष्टि।
अवनि स्वाति...
Bahut achhi hai dear
ReplyDeleteबेहद उम्दा लिखी हो 😘😘
ReplyDeleteBht achi h
ReplyDeleteबहुत खूब ऐसे ही लिखती रहो
ReplyDeleteUmda
ReplyDeletebhot acha
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