,,, माँ ,,
मेरे घर में मेरी मां है,
मेरा तो घर ही जन्नत है
करूँ सेवा मैं नित मां की
यही मेरी इबादत है
है उनके हाथ का हर इक
निवाले में बसा अमृत
भले सूखी हो रोटी हाथ से
उसके नियामत है
दुआएं उसकी जैसे धूप
में साया घनेरा है
वो रूठे तो लगे जग में
अंधेरा ही अंधेरा है
मेरे ईश्वर मेरी किस्मत में
बस इतना ही लिख देना
दे जन्नत सबको मेरे तो लिए
बस मां ही लिख देना
,,,सौरभ हिंदुस्तानी ,,,
दातागंज,(बदायूं उ0 प्र)
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