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प्रोषित पतिका..कहानी


।। प्रोषित पतिका।।

कहानी

सुबेरे - सुबेरे रामलाल जी मुँह लटकाये जा रहे थे। मैने पूँछ भाई  सब खैरियत तो है न। ढाई से का सिर हिलाते हुए कहा मालिक हम गरीबों की सहायता ईश्वर भी नहीं करते। मैने कहा हुआ क्या उन्होंने कहा बाबू पाँचवीं संतान भी लड़की हुई। कहकर पीपल के साया मे बैठ गये
आंखों मे आंसू भर आया।

मैने  कहा भाई सब ठीक होगा घबराइए नहीं सब आपने भाग्य से आयीं हैं।
उन्होने कहा भाग्य होता मेरे घर जन्म लेती कि किसी बड़े आदमी के घर।

दो दिन बाद पता चला कि लड़की विकलांग है, दोनों पैरों मे पोलियो है। अब राम लाल के सर पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा।

पूरा परिवार दुःख के सागर मे डूबा था। मै भी सांत्वना दिया पर सांत्वना से काम कहां चलता। एक तो लड़की दूजे विकलांग।

धीरे - धीरे समय वितने लगा। वह पढ़ने लायक हो गयी
और उसका दाखिल पाठशाला मे कराया गया। वहीं से उसका विकलांग प्रमाण - पत्र भी मेरे द्वारा वनवाया गया।
उसकी बुद्धि बड़ी प्रखर थी। विद्यालय से जितने विकलांगों की प्रतियोगिता कराई गयी वह सबमें अव्वल रही।

समय बीतता गया। वह परीक्षा में अव्वल आती रही।
उसका बाल विवाह हुआ था पर विकलांगता के कारण उसके घर वाले  उसे ले नहीं गये। एक पत्थर रामलाल अपने सीने पर ये भी झेला था।

बेला ने सोंच लिया था अब हमे शादी नहीं करना है।
केवल एक ही लक्ष्य कि पढ़ाई करनी है।

बेला ने समीक्षा अधिकारी की परीक्षा टाप कर गयी।
और पोस्टिंग अपने ही शहर मे हुई। रामलाल के सारे बची बच्चियों की बेला ने शादी करवा दिया तथा पूरे परिवार के रहने के लिए आलीशान मकान बनवा दिया। आज रामलाल का नाम धनी आदमियों के श्रेणी में गिना जाता है। बेला की विकलांगता अभिशाप न होकर बरदान साबित हो गया। पर बेला ने शादी नहीं किया। वह एक प्रोषित पतिका थी आज भी है।
स्वरचित                   ।। कविरंग।।

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