।। जहरी।।
आज लोग गोपू के घर आ रहे हैं। कारण कि उसके घर पर धूमधाम से तिलक की तैयारी चल रही है। सारे रिश्तेदार लगभग आ चुके है। लोगों मे हर्षोल्लास का माहौल है।
एक कोने बैठा गोपू चिन्ता मे डूबा है। उसकी एक ही लड़की जहरी दोनों पैर से विकलांग है। पैसे की समस्या के कारण उसकी पढ़ाई - लिखाई भी नहीं करा पाये थे। आज वह पच्चीस वर्ष की हो गयी। एक शादी पास मे था, उसके लिए देखे थे। लड़का तैयार था क्योंकि वह भी विकलांग था, पर वह कुछ काम भर के लिए पढा़ था। वह दिल्ली मे नौकरी करता था। वह उसके दूर के रिश्ते मे भी पड़ता था। प्रायः नौकरी पर से आने के बाद वह गोपू के घर आता - जाता था तथा जहरी को एक बड़ा मोबाइल लाकर दिया था। जिससे कभी-कभार वह उससे बात चीत करती थी। जहरी का पूरा मन उससे शादी करने को नहीं था कारण जिस समस्या से वह ग्रसित थी उसी समस्या से उसका पति भी ग्रस्त था। पर वह मजबूरी मे शादी को तैयार हो गयी थी।
इधर घर मे पूरा अफरा-तफरी था। सभी लोग तिलक की तैयारी मे लगे थे। एक कोने मे जहरी बैठी थी। गेहुँवां वदन बडी़ - बड़ी आखें यौवन से गदरायी शरीर जिसे देखकर मन अकारण उसके तरफ आकर्षित हो जाता था। जनार्दन नाम का उसका एक रिश्तेदार तिलक मे उसके घर आया था जो बार-बार जहरी को निहार रहा था। मानो वह समय के ताक मे था कि उससे मन की दो बात कर लूँ। सभी लोग जब कार्य मे व्यस्त हो गये तो समय पाकर जनार्दन जहरी के पास पहुंच गया और कहने लगा की तुमसे कुछ बातें करनी है। यदि चाहो तो घर के पीछे बाग में थोड़ी समय के लिए आ जाओ। पहले तो उसने इन्कार किया पर बार - बार कहने पर राजी हो गयी। दोनों रात के अंधेरे मे बाग मे चले गये।
सारी रात कब बीता पता ही नहीं चला। अब तो एक क्षण जहरी उसे देखे बिना रह नहीं पाती। दोनों का प्यार परवान आकाश छूने लगा। जहरी धन्यभाग मानने लगी कि जनार्दन जैसा सुन्दर लड़का संसार मे ईश्वर ने बनाया ही नहीं। आज मेरे पूर्व जन्म के भाग्य उदय हो गये।
अब इधर विवाह का दिन आ गया। सभी खुशी मे शुभ गीत गा रहे थे। पर जहरी की निगाहें जनार्दन को ढूंढ रही थी। आज वह आया नहीं। वह बहुत ही व्यग्र थी कि इतने मे मोबाइल पे जनार्दन का काल आ गया। अब तो उसके खुशी का ठिकाना न रहा। फोन पर उसने बताया तू फला जगह आ जाओ मै ब्लोरो लेकर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हुँ। जहरी के खुशी का ठिकाना न रहा पर वहां जाय कैसे, वह एक रिश्तेदार के लड़के को पचास रुपए देकर चौराहे पर पहुंच गयी तथा उसे वापस भेज दिया। इतने में जनार्दन वहां गाड़ी लेकर पहुंचा तथा जहरी को उठाकर लाद लिया और चलता बना।
जनार्दन जब घर पहुंचा तो सब उल्टा हो गया। उसके पिता नाराज़ हो गये और भला बुरा कहने लगे। किसी तरह से रात बिता सुबह होते ही दोनों चलता बने। जनार्दन जहरी कानपुर पहुंच गये जहां उसके पिता नौकरी पहले करते थे और एक घर बनवा लिया था। आज उस घर में जनार्दन रहकर नौकरी करता था। पिता रिटायर्ड होकर घर पर ही रहते थे। अब दोनों मौज से वहीं रहने लगे।
इधर शादी से गोपू जब लौटा तो जहरी का हाल सुनकर बडा़ दुखी हुआ पर जनार्दन का नाम सुनकर खुश हुआ क्योंकि वह तो उसका रिश्तेदार जो ठहरा। पर गांव भर मे प्रतिक्रिया होनी शुरू हो गयी कि कोई वैधानिक संस्तुति के बगैर वह कभी भी लाकर वह पहुंचा सकता है। यह सुनकर गोपू भी परेशान हो उठता। धीरे - धीरे आठ महीना बीत गया। जहरी पेट से हो गयी। जनार्दन का भूत नीचे उतर चुका था। अब वह उसे देखना नहीं चाहता था। जहरी को बहला - फुसला कर उसी चौराहे पर साम के समय छोड़ गया और कहा जल्द ही तूझे लेने आऊंगा। जहरी सब समझ गयी कि मेरे साथ क्या हुआ।
रात के अंधेरे मे किसी तरह से घुसकते हुए डेढ़ घंटे मे घर पहुंची। गोपू जहरी की हालत देख बेहोश हो गया। कुछ देर बाद जब होश आया तो फूट कर रोने लगा। सभी लोग सांत्वना दिये। अब तो इनके पास सिवाय रोने के कुछ नही था। जहरी ने कहा सारा दोष मेरा है। मैने मन मानी की हूं उसका फल मै ही भोगूंगी। अब क्या था भगवान ने लड़का दे दिया। उसी को देखकर जहरी सारा दुख भूलकर उसी के पालन मे जुट गयी।
स्वरचित कहानी
।। कविरंग।।
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