मानक भाषा का अर्थ एवं परिभाषा
मानक भाषा का स्वरूप
मानक भाषा को कई नामों से पुकारते हैं। इसे कुछ लोग ‘परिनिष्ठित भाषा’ कहते हैं और कई लोग ‘साधु भाषा’। इसे ‘नागर भाषा’ भी कहा जाता है । अंग्रेजी में इसे Standard Language’ कहते हैं। मानक का अर्थ होता है एक निश्चित पैमाने के अनुसार गठित। मानक भाषा का अर्थ होगा, ऐसी भाषा जो एक निश्चित पैमाने के अनुसार लिखी या बोली जाती है। मानक भाषा व्याकरण के अनुसार ही लिखी और बोली जाती है अर्थात् मानक भाषा का पैमाना उसका व्याकरण है। हम जब किसी अपरिचित व्यक्ति से मिलते हैं तो उससे मानक भाषा में ही बातचीत करते हैं, जब हम कक्षा में किसी प्रश्न का उत्तर देते हैं तो हम मानक भाषा का ही प्रयोग करते हैं। हम पत्र-व्यवहार में मानक भाषा ही लिखते हैं। समाचार पत्रों में जो भाषा लिखी जाती है, वह भी मानक ही होती है। आकाशवाणी और दूरदर्शन के समाचार मानक भाषा में ही प्रसारित किए जाते हैं। हमारे प्रशासन के सारे कामकाज मानक भाषा में ही सम्पन्न होते हैं। कहने का आशय यह है कि मानक भाषा हमारे बृहत्तर समाज को सांस्कृतिक स्तर पर आपस में जोड़ती है और हम उसी के माध्यम से एक-दूसरे तक पहुँचते हैं। मानक भाषा हमारी बात दूसरों तक ठीक उसी रूप में पहुँचाती है जो हमारा आशय होता है। अत: मानक भाषा सर्वमान्य भाषा होती है, वह व्याकरण सम्मत होती है और उसमें निश्चत अर्थ सम्प्रेषित करने की क्षमता होती है। गठन और सम्प्रेषण की एकरूपता उसका सबसे बड़ा लक्षण है। यह भाषा सांस्कृतिक मूल्योंं का प्रतीक बन जाती है। धीरे-धीरे इस मानक भाषा की शब्दावली, उसका व्याकरण, उसके उच्चारण का स्वरूप निश्चित और स्थिर हो जाता है और इसका प्रसार और विस्तार पूरे भाषा क्षेत्र में हो जाता है। इस प्रकार मानक भाषा की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में दी जा सकती है :मानक भाषा किसे कहते हैं
‘‘मानक भाषा किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्राय: सभी औपचारिक स्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करता है।’’इसी के आधार पर मानक भाषा के लक्षण निश्चित होते हैं :-
वह व्याकरणसम्मत होती है। वह सर्वमान्य होती है। उससे क्षेत्रीय अथवा स्थानीय प्रयोगों से बचने की प्रवृत्ति होती है, अर्थात् वह एकरूप होती है। वह हमारे सांस्कृतिक, शैक्षिक, प्रशासनिक, संवैधानिक क्षेत्रों का कार्य सम्पादित करने में सक्षम होती है। वह सुस्पष्ट, सुनिर्धारित एवं सुनिश्चित होती है। उसके सम्प्रेषण से काई भ्रान्ति नहीं होती। वह नवीन आवश्यकताओं के अनुरूप निरन्तर विकसित होती रहती है। नये शब्दों के ग्रहण और निर्माण में वह समर्थ होती है। वैयक्तिक प्रयोगों की विशिष्टता, क्षेत्रीय विशेषता अथवा शैलीगत विभिन्नता के बावजूद उसका ढाँचा सुदृढ़ एवं स्थिर होता है। उसमें किसी प्रकार की त्रुटि दोष मानी जाती है। वह परिनिष्ठित, साधु एवं संभ्रान्त होती है। इस दृष्टि से आज हिन्दी भी एक मानक भाषा है अर्थात् जहाँ-जहाँ हिन्दी लिखी या पढ़ी जाती है या पढ़े-लिखे लोग उसका व्यवहार करना चाहते हैें तो इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह व्याकरणसम्मत हो और उसका व्याकरण वही हो जो सर्वमान्य है।
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