तुलसीदास की रचनाओं का परिचय
रामचरितमानस
वैराग्य संदीपनी
यह कृति रामलला नहछू के बाद की मानी जाती है। इसमें कुल 62 छंद हैं 46 दोहे, 2 सोरठे और 14 चौपाइयों से समृद्ध रचना है। विशेष बात जो अक्सर परीक्षार्थियों को परेशान करती है कि कृति की भाषा क्या है? तो मित्रों इसमें अवधी एवम ब्रज का मिला जुला रूप मिलता है। तुलसी ने स्वयम लिखा है- "तुलसी वेद पुराण मत, पुरन शास्त्र विचार/यह विरोग संदीपनी, अखिल ज्ञान को सार"! कृति का प्रतिपाद्य वैराग्य के फलस्वरूप मिलने वाली आध्यात्मिक शांति है। कृति में प्रबंधात्मक नहीं है। गोस्वामी जी मानते हैं कि यह वेद, पुराण एवं शास्त्रों का सार है। कृति की रचना सम्वत 1614 बताई जाती है।
बरवै रामायण
69 बरवै की छोटी कृति। रामचरित मानस की भांति कृति कांडों में विभक्त है। बालकाण्ड में 19, अयोध्या कांड में 08, अरण्यकाण्ड में 06, किष्किन्धाकाण्ड में 02, सुन्दरकाण्ड में 01 और उत्तरकाण्ड में 27 छंद हैं। विशेष बात बरवै में मानस की कथायोजना का अभाव है विशेष रूप से उत्तरकांड। काव्यकला की दृष्टि से उत्कृष्ट। श्रृंगार एवम भक्ति का प्राधान्य।
पार्वती मंगल
90 छंदों का लघु खंडकाव्य। ठेठ अवधी में, 74 छंद मंगल सोहर और 16 छंद हरिगीतिका। पार्वती के जन्म पर उनकी माँ-पिता मयना और हिमवान के उल्लास का वर्णन है। विवाह योग्य होने पर नारद ने शिव की उपासना का सुझाव योग्य वर हेतु दिया। तमाम विघ्न एवम कष्टों के उपरांत विवाह की घटना का वर्णन है। पार्वती मंगल में कथा के आधार कालिदास का कुमार सम्भव है। पार्वती मंगल का रचना काल सम्वत 1643 फाल्गुन शुक्ल पंचमी दिन गुरुवार ठहरता है।
जानकी मंगल
अवधी में रचित 120 छंदों की अत्यंत सफल प्रबन्ध रचना है। इसका मुख्य प्रतिपाद्य 'सिय-रघुवर विवाह' है। 96 मंगल सोहर और 24 हरिगीतिका छंद। 4 मंगल सोहर के बाद एक हरिगीतिका रखा गया है, कथा प्रवाह की दृष्टि से बेशक़ उत्कृष्ट रचना है। जनक का प्रण एवम सीता स्वंयवर की घटना मुख्य है कृति में। इस रचना का प्रमुख उद्देश्य मांगलिक अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सरल और सुगम रूप में प्रस्तुत करना। इस कृति पर वाल्मीकि रामायण और अध्यात्म रामायण का प्रभाव दिखाई पड़ता है। डॉ. माता प्रसाद गुप्त के अनुसार कृति का रचनाकाल सम्वत 1627 है।
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