देवताओं के महान शिल्पकार व सृष्टि के सृजनकार श्री विश्वकर्मा जी
अपना देश भारत पर्वों-उत्सवों का देश है। यहां की संस्कृति बहुत ही रंग-बिरंगी संस्कृति हैं हर दिन कुछ न कुछ तीज-त्यौहार होता रहता हैं । आज देवताओं के शिल्पकार व सृजन के देवता श्री विश्वकर्मा जी की जयंती है। इसका सांस्कृतिक-आध्यात्मिक आधार है। विशेषकर जयंती मनाने के पीछे आदर्श, मूल्य, धरोहर और सामाजिक उपादेयता का अधिक महत्व है। हिंदू धर्म में मानव विकास को धार्मिक व्यवस्था के रूप में जीवन से जोड़ने के लिए विभिन्न अवतारों का विधान मिलता है। यही वजह है कि राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर से लेकर अन्य सभी महापुरुषों की जयंती प्रेरणा स्वरूप मनाते हैं। रामनवमी या कृष्ण जन्माष्टमी समाज को ऊर्जा देने वाले सांस्कृतिक-आध्यात्मिक आयाम हैं। तो विश्वकर्मा जयंती, राष्ट्रीय श्रम दिवस को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है। उन्हें दुनिया का इंजीनियर माना गया है। यानी पूरी दुनिया का ढांचा उन्होंने ही तैयार किया है। वे ही प्रथम आविष्कारक थे। हिंदू धर्म ग्रंथों में यांत्रिक, वास्तुकला, धातुकर्म, प्रक्षेपास्त्र विद्या, वैमानिकी विद्या आदि का जो प्रसंग मिलता है, इन सबके अधिष्ठाता विश्वकर्मा ही माने जाते हैं। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इन्हीं साधनों द्वारा मानव समाज भौतिक सुख प्राप्त करता रहा है। विश्वकर्मा का व्यक्तित्व एवं सृष्टि के लिए किये गये कार्यों को बहुआयामी अर्थों में लिया जाता है। आज के वैश्विक सामाजिक-आर्थिक चिंतन में विश्वकर्मा को बड़े ही व्यापक रूप में देखने की जरूरत हैं, कर्म ही पूजा है, आराधना है। इसी के फलस्वरूप समस्त निधियां अर्थात ऋद्धि- सिद्धि प्राप्त होती हैं। कर्म अर्थात योग, कर्मषु कौशलम् योग का आधार कौशल युक्त कर्म, क्वालिटी फंक्सनिंग है। बाह्य और आंतरिक ऊर्जा के साथ गुणवत्ता पूर्ण कार्य की संस्कृति है। कहते हैं की भगवान विश्वकर्मा की ज्योति से नूर बरसता हैं। जिसे मिल जाएं उसके दिल को शुकून मिलता हैं। जो भी लेता हैं भगवान विश्वकर्मा का नाम उसको कुछ न कुछ जरूर मिलता हैं। इनके दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता हैं। विश्वकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। इसीलिए प्रत्येक व्यक्तियों को सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी ओर विज्ञान के जनक भगवान विशवकर्मा जी की पुजा-अर्चना अपनी व राष्टीय उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए।
श्री विश्वकर्मा जयंती महत्व -
गांवों के देश भारत में कार्य की विशिष्ट सहभागी संस्कृति है। यद्यपि आधुनिकीकरण, मशीनीकरण से ग्रामीण कौशल में कमी आयी है, पर आज भी बढ़ई, लोहार, कुंभकार, दर्जी, शिल्पी, राज मिस्त्री, सोनार अपने कौशल को बचाये हुए हैं। ये विश्वकर्मा पुत्र हमारी समृद्धि के कभी आधार थे। आज विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर इनकी कला को समृद्ध बनाने के संकल्प की जरूरत है। ग्रामीण ढांचागत विकास, गांव की अर्थव्यवस्था, जीविका के आधार, क्षमता वृद्धि, अर्थोपाय सबके बीच विश्वकर्मण के मूल्यों, आदर्शों की देश को जरूरत है। विश्वकर्मा जयंती के माध्यम से यदि वैश्विक इकोनोमी के इस दौर में भारतीय देशज हुनर, तकनीक को समर्थन, प्रोत्साहन मिला तो मौलिक रूप से देश उत्पादक होगा, समृद्ध होगा, सभी के पास उत्पादन का लाभ पहुंचेगा। विश्वकर्मा पुत्र निहाल होंगे और भारत उत्पादकता में पुनर्प्रतिष्ठित होगा ।
श्री विश्वकर्मा जी सृष्टि के प्रथम सूत्रधार थे -
वह सृष्टि के प्रथम सूत्रधार कहे गए हैं। विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है। यही मान्यता अनेक पुराणों में भी है। जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे। विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं। विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या बल्कि रथादि वाहन और रत्नों पर विमर्श है। ‘विश्वकर्माप्रकाश’ विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। विश्वकर्माप्रकाश को वास्तुतंत्र भी कहा जाता है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है। ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।
सृष्टि के सृजनकार महान शिल्पकार श्री विश्वकर्मा जी को सादर नमन् ।
- ✍🏻 सूबेदार रावत गर्ग उण्डू 'राज'
( सहायक उपानिरीक्षक - रक्षा सेवाऐं भारतीय सेना
और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी )
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