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दुख के बाद सुख dukh ke baad sukh

कविता

दुख के बाद सुख


दुख आने  पर ही दुनियाँ में,सुख के  दर्शन होते है।
फूलों  की सौरभ वे पाते,जो कांटो के दंश सहते हैं।

अगर नहीं पतझड़ तो कैसे,बासंती  मधुमास खिले।
अगर  नहीं तम घोर निशा का,तो कैसे प्रत्यूष मिले।
विषका घट ले हाथ वही,घट अमृत का फिर पातेहैं।
दुख  आने  पर ही दुनियाँ में,सुख के  दर्शन होते है।

जो लहरों  से डरे,किनारे  पर ही, हार  खड़े रहते।
पाँव  डूबोने से डरकर जो,साहिल बीच पड़े रहते।
भला कहाँ वे सागर की,मौजो का सुख ले पाते है।
दुख आने  पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।

जो  चोटो  संग  नही खेलते,वे  कोरे  पाषाण रहे।
जो घन की  थापों से डरते, कोरे अनगढ़ पड़े रहे।
अविरल  चोटे सहते जाते,शिव लिंगी कहलाते है।
दुख आने पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।

कदम कदम पर लिया सहारा,कहाँ देरतक टिक पाये।
उदयकाल   से  अस्तकाल  तक,गैरो  के  कंधे  आये।
फोड़   धरा  अपने  बलबूते, वृक्ष   वही  बन  पाते हैं।
दुख  आने  पर  ही  दुनियाँ में, सुख  के दर्शन होते है।

छोड़ निराशा बढ़ो वेग से,हर तुफां से भिड़ जाओं।
डरो नहीं तुम हालातों से,हर बाधा से लड़  जाओं।
होड़  लगाते  पवन  वेग  से,वे  पंछी  उड़  पाते है।
दुख  आने पर ही दुनियाँ में,सुख के दर्शन होते है।

हेमराज सिंह कोटा राजस्थान
यह मेरी मौलिक रचना है

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