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विश्व पुस्तक दिवस पर विशेषांक' vishaw pustak diwas

मौलिकता पर भारी कट, कॉपी, पेस्ट एवं गूगल पर निर्भरता"


'विश्व पुस्तक दिवस पर विशेषांक'


सोशल मीडिया के दौर में आज प्रचलित इन अंग्रेजी शब्द कट, कॉपी ,पेस्ट से बच्चा - बच्चा भी वाकिफ है । होगा भी क्यों नही, आखिर बिना कुछ मेहनत किये अपने को इच्छित सामग्री मिल रही है । इसी कारण आज मौलिक रचनाओं में कमी आ रही है । हमारी इस आदत ने हमे पंगु बना दिया है । चूँकि आज विश्व पुस्तक दिवस और विश्व अंग्रेजी दिवस भी है ।  विश्व पुस्तक दिवस जिसे कॉपीराइट दिवस के रूप में भी जाना जाता है ।  23 अप्रेल 1995 में पहली बार यूनेस्को द्वारा इसकी शुरुआत की गई । हालाँकि इसकी नींव तो स्पेन में पुस्तक विक्रेताओं द्वारा प्रसिद्द् लेखक मीगुयेल डी सरवेन्टीस को सम्मानित करने के लिये 1923 में आयोजित एक समारोह में ही रख दी गई थी । अपवाद स्वरूप यूके एवं आयरलैण्ड जैसे देशों में 23 अप्रेल को सेंट जॉर्ज दिवस होने के कारण मार्च के पहले गुरुवार को ही विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है ।  23 अप्रेल 2001 से भारत सरकार विश्व पुस्तक दिवस मना रही हैं ।
विश्व के ख्याति प्राप्त लेखक शेक्सपीयर इस दिन 23 अप्रेल 1616 को दुनिया से चल बसे । और पीछे छोड़ गए अपनी अमिट यादें , जो विश्वभर की लगभग समस्त भाषाओं में उपलब्ध है । शेक्सपीयर ने 30 से अधिक नाटक और 200 से अधिक कविताएं लिखी थी ।
1995 में पेरिस में हुए यूनेस्को जनरल कांफ्रेंस में विश्व पुस्तक दिवस मनाने की घोषणा की थी ।  यूनेस्को ने कई महान शख़्सियतों की यादों को चिरस्थायी रखने के लिये उनकी पुण्यतिथि के रूप में यह दिवस चयन किया । जिसमें विलियम शेक्सपीयर, मिगुएल सरवेन्टस आदि का नाम उल्लेखनीय हैं । कई महान विभूतियों का आज जन्मदिन भी है ।
वर्ष 2019 में आयोजित विश्व पुस्तक दिवस की थीम थी- 'एक कहानी साझा कीजिये' इससे पहले पढ़ना यह मेरा अधिकार है, दुनिया को पढ़ो, तेज बनो किताब पढ़ो आदि थीम पर कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं ।
यूनेस्को द्वारा पढ़ना, प्रकाशन और प्रकाशनाधिकार को पूरी दुनिया में लोगों के बीच बढ़ावा देने के लिये , उन्हें प्रोत्साहन देने के लिये कई कार्यक्रम आयोजित करके मनाता है । 
लेकिन आज चिंतन करने वाली बात यह है कि इस दिवस की प्रासंगिकता तब है जब मूल लेखकों की रचनाओं का बिना उसकी अनुमति से प्रसारित करने का विकल्प ही उपलब्ध न हो । हालाँकि समूचे विश्व में इस पर कानून है । भारत में भी कॉपीराइट एक्ट 1957 लागू है । इसको विविध कार्यो में उपयोग में लिया जाता है । लेखन कार्य से लेकर, फिल्म जगत, संगीत, उत्पादन , तकनीक इत्यादि क्षेत्र में यह प्रभावी है । कॉपीराइट जिसको हिंदी में प्रतिलिप्यधिकार कहते हैं । यह मूल कृति का सरंक्षण करता हैं ।
सोशल मीडिया के इस दौर में लोग दूसरों की मौलिक रचनाओं में संशोधन करके अपना नाम जोड़कर उसे वायरल कर देते है । यही बात जब मूल लेखक के पास पहुँचती है तो सोचो उसे कितना दुःख होता होगा । शेयर जरूर कीजिए मगर उसके नाम का हवाला भी तो देना चाहिए । कोई भी लेख संबंधी रचना हो, गीत हो या फिल्म हो उस पर लेखक का पूरा क़ानूनी अधिकार होता हैं । यदि इसका बिना लेखक की अनुमति से प्रसार और कॉमर्शियल उद्देश्य के लिये इसका यदि उपयोग करता हैं तो यह कॉपीराइट उल्लंघन की श्रेणी में आता हैं । फिर भी यदि किसी लेख , कविता आदि मूल रचना के कुछ अंश उस विषय को उदाहरण सहित समझाने के लिये आवश्यक हो तो आप उस लेखक या रचना का हवाला देकर लिख सकते हो, यह कॉपीराइट एक्ट की धारा 52 के तहत कॉपीराइट के उल्लंघन की श्रेणी में नही आता है । 
हमारे देश में कुछ लोगों की इन बचकानी हरकतों से अफवाहें इतनी तेज गति से प्रचारित होती है कि पोस्ट का मूल भाव समझे बिना या पोस्ट की तहकीकात किये बिना ही वायरल हो जाती है, जो कभी कभी दंगो का रूप भी धारण कर लेती है । इसलिये सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा सम्हाल रही पुलिस को बकायदा आधिकारिक आदेश जारी करके यह अपील करनी पड़ती है कि बिना तथ्यों की जाँच किये झूठी पोस्ट या अफवाह न फैलाएं । यदि ऐसा कोई सॉफ्टवेयर विकसित किया जाए कि किसी की मूल रचना को संशोधित करके शेयर करने की कोशिश करे तो शेयर का विकल्प ही न हो । 
कुछ दिन पहले मेरे दोस्त के व्हाट्सअप स्टेट्स पर एक छायाचित्र लगा हुआ था, मैंने उसे अभिवादन स्वरूप संदेश भेजा । फिर उसके संबंध में अर्थ जानने की जिज्ञासा की तो स्वाभाविक प्रत्युत्तर मिला कि गूगल पर सर्च कीजिए । उससे बेहतर कौन समझा सकता है । ये दर्शाता है कि हम अपनी मौलिकता को खो रहे है या उसको समझने की कोशिश ही नही कर रहे है। अपने विचार प्रकाशित करने के लिये गहन अध्ययन जरूरी है । अध्ययन के बारे में विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों में शुमार बिल गेट्स ने कहा था कि - "मैंने ढेर सारी अज्ञात किताबें पढी है और एक किताब को खोलना बहुत अच्छा हैं ।"
विशेषकर पथभ्रमित हो रही बाल एवं युवा पीढ़ी से आग्रह करता हूँ कि चिंतन विकसित करने के लिये स्वाध्याय जरूरी है । सच में हम इस दिवस को जान गए तो हमारी मौलिक प्रतिभाएं जरूर बाहर निकलकर प्रदर्शित होगी ।

लेखक
कैलाश गर्ग रातड़ी
शिक्षक
जिला बाड़मेर राजस्थान

1 comment:

  1. प्रकाशन हेतु संपादक मण्डल का हार्दिक आभार 💐💐

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