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परम श्रद्धेय महात्मा ज्योतिबा राव फुले के श्रीचरणों में समर्पित एक पुष्पांजलि mahatma jyotiba Rav phule ko smarpit ek puspanjali

पुष्पांजलि


जब,फैल जाता है अंधेरा,
निशा का राज होता है।
विचरते हिंसक पशु निर्भय, 
शिकार निर्बल का होता है।        ।1।

नियम कानून ना नैतिकता, 
क्रूर दानवता होती है। 
जिधर देखो उधर दिखती, 
एक बर्बरता होती है।                ।2।

सिसकती भीतर ही भीतर, 
मनुजता छुप कर रोती है। 
राज पशुता का जहां होता, 
वहीं हालत यह होती है।            ।3।

भारत के मध्य काल में भी, 
मानवता लज्जित होती थी। 
बेबस और लाचार हुई, 
भारत माता भी रोती थी।           ।4।

बेटे थे उसके किंतु कभी, 
सम व्यवहार नहीं करते थे। 
अपने बेगानों के संग मिल,
अपनों से नफरत करते थे।              ।5।
बन गए *पूज्य जन* कुछ समाज के, 
कुछ नर *ठेकेदार*  बने। 
समेट लिए अधिकार स्वयं तक, 
और कुछ *चौकीदार* बने।         ।6।

बड़ा वर्ग हिंदू समाज का, 
सेवक जन कहलाता था। 
सेवा करना परम धर्म, 
 *कर्मों का फल* कहलाता था।     ।7।

सुख संपदा जमा थी केवल, 
कुछ लोगों की मुट्ठी में। 
बहुसंख्यक को झोंक दिया था, 
दुख अभाव के भट्टी में।                ।8।

शिक्षा का अधिकार नहीं था, 
ना खान-पान पहनावे का। 
यहां तक की बस्ती अलग बसा दी, 
राह बीच नहीं आने का।              ।9।

नारी का सम्मान नहीं था, 
देहली *लक्ष्मण रेखा* थी। 
जला दिया जाता पति के संग, 
जब वह *विधवा* होती थी।      ।10।

भर जाता जब घड़ा पाप का, 
कोई फोड़ने आता है। 
वलय बना मानव विरुद्ध जो, 
उसे तोड़ने आता है।                 ।11।

मिट जाता साम्राज्य निशा का, 
प्रातकाल जब होता है। 
ठहर नहीं पाता तम भू पर, 
रवि जब उदय गगन होता है।      ।12।

दिन था वह ग्यारह अप्रैल का, 
साल अठारह सत्ताइस की।
भारत माता के आंचल में,
ज्योति रवि की एक चमकी।       ।13।

सूरज उदय हुआ पुणे में,  
*गोविंदराव फुले* के घर। 
एक अलौकिक दिव्य ज्योति थी, 
उसके सुंदर चेहरे पर।               ।14।

सुषमा निरख तेजमय आनन, 
लज्जित हो शर्माती थी। 
 *माता विमला बाई* खुशी से, 
फूली नहीं समाती थी।              ।15।

किंतु अभागिन थी वह माता, 
अधिक प्यार ना दे पाई।
छोड़ अकेला अपने लाल को, 
स्वर्ग लोक को वह धाई।            ।16।

नौ महीने की आयु थी, 
 *सगुनाबाई* ने पाला था। 
मां की ममता का प्यार दिया, 
उसको जो *जगत उजाला* था। ।17।

सात बरस की आयु में,
शाला में पढ़ने भेज दिया। 
किंतु जातिगत भेदभाव-वश, 
शाला जाना छोड़ दिया।            ।18। 

पढ़ना नहीं छोड़ा *ज्योतिवा* , 
घर पर रहकर वह पढ़ता। 
पढ़-पढ़ घर पर विविध पुस्तकें, 
विशुद्ध ज्ञान अर्जित करता।       ।19।

विविध विषयों पर वह बालक,
*वृद्धों से चर्चा* करता था।  
सूक्ष्म-तर्कसंगत बातों से, 
प्रभावित मन करता था।            ।20।

 *गफ्फार बेग* और *लेजिट* ने, 
पढ़ने की ललक देख इनकी। 
प्रवेश दिलाया स्कूल में तो, 
साध पूर्ण हो गई मन की।          ।21।

उम्र चौदह थी जब अंग्रेजी, 
स्कूल में प्रवेश लिया। 
बीस वर्ष की आयु में, 
स्कूली शिक्षण पूर्ण किया।         ।22।

उम्र नहीं होती बाधा, 
पढ़ने का पक्का इरादा हो।
ढह जाती दीवार प्रस्तर की,
बन लकड़ी का बुरादा हो।          ।23।

विवाह हुआ जब *ज्योतिबा* का, 
उम्र तेरह साल की थी। 
 *सावित्रीबाई* भी तब तो, 
बालिका नौ ही साल की थी।      ।24।

स्वयं भी पढ़ते उसे पढ़ाते,
खेतों पर आते जाते। 
लेकिन ठेकेदार समाज के,
सहन नहीं यह करपाते।            ।25।

झुके नहीं हर कदम उनका,
निर्भय पथ पर बढा चला।
प्रथम शिक्षिका बन भारत की,
नारी शिक्षा का दीप जला।         ।26।

तोड़ रूढ़ियां हिंदू समाज की,
वे आवाज उठाने लगे।
स्त्री-शिक्षण विधवा-विवाह,
पुनर्विवाह कराने लगे।              ।27।

छुआछूत और जाति-पांति वा,
बाल-विवाह विरोध किया।
उच्च वर्ण के समर्थ जनों से, 
कैसा पंगा मोल लिया।              ।28।

निकलवा दिया दोनों को घर से,
डाल दबाव पिताजी पर।
किंतु डिगे नहीं अटल लक्ष्य से, 
बढ़ते रहे सत्य पथ पर।             ।29।

पहली शाला ज्योतिबा ने,
कन्या हित पुणे खोली।
प्रथम वाटिका वह भारत की,
जहां बेटियां थीं डोली।              ।30।

एक नहीं तीन-तीन पुणे में, 
आस-पास सत्ताइस खोलीं।
लगा दिया जीवन सेवा में,
दलितों की आंखें खोलीं।           ।31।

अग्रदूत बन सामाजिक - 
क्रांति की मशाल जलाने लगे।
आत्म सम्मान मिले हर जन को,
 भाव ह्रदय में जगाने लगे।         ।32।

*सत्य शोधक समाज* संगठन,
ज्योतिबा फुले बनाया था। 
दलित वर्ग और निर्बल जन को,
जिससे न्याय दिलाया था।         ।33।

किसान मजदूर आंदोलन का,
भारत में सूत्रपात किया। 
निश्चित घंटे किए काम के, 
दिवस मध्य आराम लिया।         ।34।

साल अठारह सौ अठासी,
मुंबई सभा विशाल हुई।
ज्योतिराव फुले को उसमें,
*महात्मा जी* की उपाधि दई।   ।35।

ज्योति देखकर जिस सूरज की,
अंधियारा भी पस्त हुआ। 
28 नवंबर 1890 को,
वह सूरज भी अस्त हुआ।           ।36।

गर नहीं होते *फुले महात्मा* , 
भारत शिक्षित नहीं होता। 
रह जाते बहुजन सब अनपढ़,
समाज विकास नहीं होता।         ।37।

शिक्षा ही वह चाबी है, 
जिससे खुलते सब ताले हैं। 
मान सम्मान वित्त पद मिलते,
मिट जाते सब जाले हैं।             ।38।

करें समीक्षा ज्योतिबा की, 
शब्द बांध नहीं पाएंगे। 
व्यक्तित्व निराला था उनको हम,
भूल कभी नहीं पाएंगे।              ।39। 
 ‌
समाज सुधारक चिंतक लेखक,
क्रांतिकारी विचारक थे। 
अग्रदूत शैक्षिक क्रांति के, 
और अछूत उद्धारक थे।            ।40।

प्रणेता सामाजिक समता, 
साथी मजदूर किसान के। 
समाज प्रबोधक बहुजन रक्षक, 
संबल नारी सम्मान के।             ।41।
  

  रचनाकार
  कांति प्रसाद सैनी 
  (वरिष्ठ अध्यापक)
जनूथर (डीग) भरतपुर
       राजस्थान

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