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दीपदान एकांकी का सारांश/ कथासार/ Deepdan ekanki ka saransh

 Deepdan ekanki ka saransh / दीपदान का सारांश/dipdan ekanki/ दीपदान एकांकी का उद्देश्य/ dipdan ekanki path ka saransh/ दीपदान पाठ का सारांश/ deepdan ki kahani/ दीपदान एकांकी/ dipdan kahani ka uddeshy/ दीपदान एकांकी की कहानी/ Ramkumar varma/ दीपदान का अर्थ/ dipdan ki katha/ दीपदान का कथासार/ deepdan ka saar/ डॉ रामकुमार  वर्मा /दीपदान का आशय /  दीपदान एकांकी किसने लिखी है/ deepdan ka lekhak koun h/ dipdan ka aashy / दीपदान एकांकी का सार/ deepdan ekanki claas -9/ deepdan path ki katha likho/ दीपदान एकांकी और डॉ रामकुमार  वर्मा/ दीपदान कक्षा-9।

 

 

दीपदानएकांकी का सारांश/ कथासार

दीपदानएकांकी डॉ रामकुमार  वर्मा द्वारा लिखित प्रसिद्ध ऐतिहासिक एकांकी है। रामकुमार वर्मा हिंदी एकांकी के जनक थे औरएकांकी सम्राटके रूप में जाने जाते है। रामकुमार वर्मा ने कई एकांकियां  लिखी है। जिसमें से प्रमुख एकांकी "दीपदान" है। आज हम दीपदान एकांकी पढ़ेंगे/ दीपदान एकांकी का सारांश

 

 

दीपदान का सारांश/Deepdan ekanki ka saransh

दीपदान एकांकी की कथा चित्तौड़ की एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है, जिसमें राजपूताना के त्याग-बलिदान के  इतिहास  का चित्रण  हुआ है।  चित्तौड़गढ़ के महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद चित्तौड़गढ़ के वास्तविक उत्तराधिकारी का प्रश्न उठता है, जो वास्तव में राणा साँगा के छोटे पुत्र कुँवर उदयसिंह थे। परंतु कुँवर उदयसिंह के छोटे  होने के कारण राणा साँगा के छोटे भाई पृथ्वीसिंह के दासीपुत्र बनवीर को उदयसिंह के संरक्षक के रूप में चित्तौड़ की गद्दी सौंप दी जाती है।   

 

 

बनवीर बड़ा दुष्ट वा महत्वाकांक्षी था।  वह चित्तौड़ पर निरंकुश राज्य करना चाहता था।  अत: वहमयूर-पक्षकुंड में असमय हीदीपदानउत्सव का आयोजन कर उदयसिंह की हत्या का षड्यंत्र रचता है। जिससे उदयसिंह की हत्या को अंजाम दे सके। कुँवर उदयसिंह की संरक्षिका पन्ना धाय, बनवीर की कुटिल प्रवृत्ति से भलीभाँति परिचित थी। अत: वह षड्यंत्र को भाँपकर उदयसिंह को उत्सव में नहीं जाने देती। रावल सरूपसिंह की पुत्री सोना उदयसिंह को उत्सव में ले जाने के लिए आती है, किंतु पन्ना उसको फटकारकर भगा देती है।

 

 

इसी बीच में वहाँ पर पन्ना का पुत्र चंदन आता है और कुँवर के विषय में पूछता है।  पन्ना से अपनी माला ठीक करने के लिए कहता है। तभी बाहर से घबराई हुई सेविका सामली आती है तथा पन्ना को महाराणा विक्रमादित्य की हत्या की सूचना देती है। वह पन्ना को बताती है कि बनवीर को लोगों ने कहते सुना है कि वह कुँवर उदयसिंह को भी जीवित नहीं छोड़ेगा। पन्ना कुँवर उदयसिंह की रक्षा का उपाय सोचते हुए उन्हें लेकर कुंभलगढ़ भाग जाने को कहती है। तब सामली उसे महल को सैनिकों के द्वारा घेरे जाने के बारे में बताती है। तब जूठी पत्तल उठाने वाला कीरतबारी आता है तथा पन्ना उदयसिंह को महल से बाहर भेज देने की योजना तैयार करती है।

 

 

    उदयसिंह को कीरत की टोकरी में लिटाकर पत्तलों से छिपाकर महल के बाहर भेज देती है तथा उदयसिंह के स्थान पर अपने पुत्र चन्दन को उसकी शैया पर सुला देती है। कुछ देर बाद बनवीर हाथ में नंगी तलवार लिए उदयसिंह के कमरे में आता है जिस पर रक्त लगा होता है। 

 

 

बनवीर पन्ना को जागीर का प्रलोभन देता है, पर पन्ना अपने कर्तव्य पर दृढ़ रहती है और बनवीर को फटकारती हुई कहती है- “राजपूतनी व्यापार नहीं करती महाराज! वह या तो रणभूमि पर चढ़ती है या चिता पर।तब क्रोधित बनवीर उदयसिंह के धोखे में चंदन को पन्ना की आँखों के सामने ही मौत के घाट उतार देता है। पन्ना चीखकर मूर्च्छित हो जाती है। बनवीर के इस क्रूर कांड और पन्ना के अपूर्व त्याग-बलिदान के साथ ही एकांकी की कथा समाप्त हो जाता है।

 

 

इस प्रकार दीपदान एकांकी में त्याग / बलिदान की कथा को रामकुमार वर्मा ने बहुत सुंदर ढंग से वर्णन किया है। यह एकांकी आपको कैसी लगी कृपया कोमेंट में लिखकर बताने की कृपा करे।

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