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सौदेबाज किस्मत (कहानी) saudebaaj kismat kahani

सौदेबाज किस्मत (कहानी)

कहते हैं कि कर्म रेखा के साथ भाग्य रेखा का प्रबल होना बहुत ज़रूरी है नहीं तो लाख सिर पटकते रह जाओ निराशा ही हाथ लगती है।कहानी के नायक रोहन के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा था।उम्र के तेईस बसंत देख चुके रोहन का भाग्योदय अभी तक नहीं हो पाया था।बचपन से ही उसका अपनी किस्मत के साथ छत्तीस का आंकड़ा था।पिताजी का अपने मित्र के साथ पार्टनरशिप में चमड़े का सामान बनाने का कारखाना था।उत्पादन और लाभ दोनों बहुत बढ़िया हो रहा था कि एक दिन अचानक शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग जाने से कारखाने को बहुत क्षति पहुंची और लाखों का सामान जलकर ख़ाक हो गया।कर्ज से उबरने के लिए घर गिरवी रखना पड़ा।पिताजी इस परिस्थिति को झेल नहीं पाए और मदिरा की शरण में चले गए। उसने मां को कई बार इस विषय पर बहस करते और मार खाते देखा था।मां ने भी इसे अपनी नियति मानकर चुप रहना सीख लिया।एक दिन किसी ने आकर ख़बर दी कि एक अनियंत्रित गाड़ी की चपेट में आने से पिताजी की असामयिक मृत्यु हो गई।मां पढी लिखी नहीं थी इसलिए नौकरी मिलना मुमकिन नहीं था।उन्होंने हार नहीं मानी और अगरबत्ती के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया।किसी प्रकार बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया।किसी तरह रोहन ने ग्रेजुऐशन पूरा किया।मां के अनुनय विनय करने पर उसी कारखाने में उसे सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई।यद्यपि रोहन कुछ अलग करना चाह रहा था लेकिन परिस्थिति को देखते हुए उसने नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन स्वाध्याय ज़ारी रखा।शिफ्ट की नौकरी होने के कारण वह पढ़ाई को ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था फिर भी जितना भी टाइम मिलता उसका भरपूर उपयोग करता था।छोटी बहन राधा बारहवीं क्लास में थी वह पढ़ाई के साथ साथ घर के  काम में भी हाथ बंटाया करती थी।रोहन की मां को इस बात की तसल्ली थी कि दोनों बच्चे अपनी पढ़ाई और काम में बेहतर तालमेल बिठाकर जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे।
राधा ने बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और उसका चयन NEET की परीक्षा में हो गया।इसी वर्ष रोहन ने भी CAT की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। उसे एक अच्छा कॉलेज भी मिल गया जिसमें बड़ी बड़ी कंपनियां प्लेसमेंट के लिए आया करती थीं।तीनों बहुत खुश थे।लेकिन ये खुशी अधिक देर नहीं टिक सकी।उनके पास इतने रुपए नहीं थे कि दोनों की फीस चुकाई जा सके।बैंक से एजुकेशन लोन के लिए एप्लाई करने गए तो वहां भी मैनेजर ने दस हज़ार रुपए बतौर सुविधा शुल्क(रिश्वत) की मांग की जो दे पाना मुश्किल था।रोहन चिंता के मारे रात भर करवटें बदलता रहा।कब नींद आई पता ही नहीं चला।सुबह मां ने कारखाने जाने के लिए उठाया।नाश्ता करते वक्त तीनों ख़ामोश थे।राधा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,"भैया,आप मेरी चिंता मत कीजिए। मैं अगले साल फिर से परीक्षा दे लूंगी।आपने तो कितनी मेहनत की है,वह बेकार नहीं जानी चाहिए।आपको कारखाने की नौकरी भी नहीं करनी पड़ेगी। मैं जानती हूं आप यह काम अपनी खुशी से नहीं करते हैं।आपकी अच्छी नौकरी लग जाएगी तो हमारी तकलीफें भी दूर हो जाएंगी।"
रोहन ने मुस्कुराकर कहा,"देखो मां,अपनी राधा कितनी सयानी हो गई है।कितनी बड़ी बड़ी बाते करने लगी है।"वह उठा और राधा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला,"पग ली,मेरे होते हुए तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।ज्यादा मत सोचो, मैं सब ठीक कर दूंगा।" वह तैयार होकर काम के लिए निकल पड़ा।वहां पहुंचकर मैनेजर से कुछ राशि एडवांस में देने की गुज़ारिश की।मैनेजर उसकी मेहनत और ईमानदारी से काफी खुश था इसलिए मान गया शाम को घर लौटा तो हाथ में मिठाई का डिब्बा था।उसने मिठाई का एक टुकड़ा निकाला और राधा के मुंह में डालते हुए बोला,"कॉलेज में एडमिशन की बहुत बहुत बधाई डॉक्टर साहिबा।" राधा ने चहकते हुए कहा,"इसका मतलब कि लोन मंजूर हो गया।रोहन ने बात बदलने का प्रयास करते हुए कहा,"अरे वह सब छोड़ो,अभी तो खुशियां मनाने का समय है।" मां और राधा दोनों का मुंह उतर गया।वे दोनों समझ गईं कि बैंक से कर्ज़ नहीं मिल सका है।मां ने तुरंत प्रश्न किया,"इतने सारे पैसों की व्यवस्था कैसे हुई?और तुम्हारे दाखिले का क्या हुआ?"रोहन ने पूरी बात बताते हुए कहा,कोई बात नहीं मां, मैं तो काम कर ही रहा हूं और फिर राधा डॉक्टर बन जाएगी तो  सोचो हमारी नाक कितनी ऊंची हो जाएगी।और फिर चाहे मैं आगे बढूं या राधा बात तो एक ही है।राधा रोते हुए भाई से लिपट गई।मां की आंखों में आंसू छलक आए।वह अच्छी तरह जानती थी कि किस्मत एक बार फिर रोहन को मात देने में सफल रही थी।
सात साल बीत गए।रोहन उसी कारखाने में मैनेजर बन गया था जिसमें वह काम किया करता था।उसकी शादी हो गई थी।राधा भी सरकारी अस्पताल में बतौर स्त्री रोग विशेषज्ञ काम कर रही थी।उसी अस्पताल में काम करने वाले सर्जन ने जब राधा से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की तो मां और रोहन सहर्ष मान गए।रोहन को अपने सात साल पहले लिए गए फैसले से कोई शिकायत नहीं थी।हां,इस बात का अफसोस तो उसे हमेशा रहने वाला था कि उसका मैनेजमेंट की पढ़ाई और मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने का सपना अधूरा रह गया था।


प्रेषक:कल्पना सिंह
पता:आदर्श नगर,बरा,रीवा(मध्यप्रदेश)

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