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अजीब ज़हनियत Ajeeb jahniyat ( कवयित्री फ़िज़ा फातिमा)

अजीब ज़हनियत


बड़ी अजीब सी ज़हनियत हो गई है लोगों की.
यंहा नेकी को बेवकूफी ही कहा जाता हैं.

दिसंबर का महीना था.
सर्द  हवाएं  चल रही थी.
मै अपनी यूनिवर्सिटी से अपने घर के लिए रवाना गयी थीं.
मैं बस स्टैंड से जब बस पर चढ़ी तो कोई भी सीट खाली नहीं थीं.
मेरी यूनिवर्सिटी से घर तक का 4 घंटे का सफर था.
कम से कम 2 घंटे का सफर मैंने खड़े होकर निकाल दिया था.
मैं थक कर चूर हो गई थी.
मेरे पास एक बैग था जिसका वजन ज्यादा तो नहीं था लेकिन  मुझे उसका वजन डबल लग रहा था.
मैं खड़ी खड़ी थक चुकी थी.
उस बस में कोई भी ऐसा ना था.
जो जो मुझे बैठने के लिए जगह दे देता.
कभी-कभी तो दिल में खयाल आता है कि यह समाज है और यह समाज की हमदर्दी है.
यहां सब लोग खुद के बारे में सोचते हैं
किसी के दुख तकलीफ से किसी का कोई वास्ता नहीं.
मेरे दिल में ख्याल आता क्या यहां कोई भी इतना रहम दिन नहीं है.
जो मुझे बैठने के लिए जगह दे दे.
मैं बहुत थक गई थी.
मेरी थकान मेरे चेहरे से जाहिर होने लगी थी.
मेरे कदम डगमगाने लगे थे.
मुझे ऐसा लग रहा था.
अगर और 1 मिनट हो गया तो शायद मैं गिर जाऊंगी.
अचानक से पीछे से मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा.
मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो एक लड़का खड़ा था.
उसके माथे पर गुलाल लगा हुआ था.
हाथ में लाल कलर के धागे बंधे हुए थे.
उसने मुझसे अपनी जगह पर बैठने के लिए कहा.
उसको शुक्रिया कहते हुए मैं उसकी जगह पर बैठ गई.
फिर मेरे दिल में ख्याल आया शायद मैं गलत सोच रही थी.
लोगों के दिल में आज भी हमदर्दी बरकरार है.
थकान के मारे मेरी आंखें बंद होने लगी थी.
मैंने अपनी आंखें बंद कर ली.
अभी मुझे बैठे हुए आधा घंटा भी नहीं हुआ था.
मैंने देखा कि एक लड़की मेरे पास खड़ी है. अचानक झटका लगने से वह मेरे ऊपर गिर पड़ी.
जब मैंने उसे देखा तो वह डगमगा रही थी.
उसके कदम लड़खड़ा रहे थे.
शायद वो बीमार थी.
अपने पैरों पर ढंग से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी.
उसे देख कर मुझसे रहा नहीं गया.
मैं अपना सामान लेकर खड़ी हो गई और उसे बैठने के लिए जगह दे दी.
मुझे शुक्रिया कहते हुए वह उस जगह पर बैठ गई.
वह लड़का जिसने मुझे बैठने के लिए सीट दी थी.
मैं उसके आगे आकर खड़ी हो गई.
उसने मुझसे कहा.
तुम कितने बड़े बेवकूफ हो 3 घंटे से तुम खड़ी हुई थी.
और जब मैंने तुम्हें सीख दे दी.
तो तुमने अपनी सीट किसी दूसरे को दे दी.
तुम खुद भी तो 3 घंटे से खड़ी हुई थी.
तुम्हें भी ज्यादा टाइम नहीं हुआ था बैठे हुए.
उसकी उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई.
वह बड़ी हैरत से मेरी तरफ देख रहा था.
मैं उसे बहुत कुछ कहना चाहती थी.
लेकिन मैं कुछ ना कह पाए.
इसलिए क्योंकि हमारा समाज इंसानियत को बेवकूफ ही समझता है.
और कुछ बातें तो ऐसी होती है जो महसूस की जाती है.
समझाएं और पढ़ाई नहीं जाती.
हमें सिर्फ अपनी सोच बदलनी है.
समाज खुद बहुत बदल जाएगा.

नाम     -   फ़िज़ा फातिमा. 
उत्तरप्रदेश -  पीलीभीत 

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