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हम वतन Oxford university me padhne ka sapna

हम वतन

ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी मे पढ़ने का हर स्टूडेंट का सपना होता हैं

मै अपने हॉस्टल के रूम मै विंडो के पास खड़ी अपने भैय्या और भाभी को मिस कर रही थीं.
मुझे 3 साल साल हो गए थे.
लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ था. i
मेरी तालीम ओ तरबियत मेरे भैया ने की थीं.
आज दुनिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी मै पढ़ने का सपना भी पूरा हो गया था.
आज दिल बहुत ख़ुश था.
क्योकि मै अपने वतन वापस जा रही थीं.
जम्मू कश्मीर जिसे जन्नत कहा जाता हैं.
वो मेरी जन्म भूमि थीं.
वहा की आब ओ हवा.
ठंडा पानी.
मक्की की रोटी सरसो का साग नून चाये और अपनी कश्मीरी ज़ुबान को बहुत मिस क्या था.
वतन की मोहब्बत क्या होती हैं.
मुझे यंहा आने से पहले पता ही नहीं था.
भैया और भाभी भी बहुत ख़ुश थे.
तीन साल बाद मै अपने घर जा रही थीं.
मै बेइंतहा ख़ुश थीं.
भैया और भाभी मुझे लेने के लिए एयरपोर्ट पहुंच  गए थे.
हाथों मै बुके  लिए मेरा इन्तिज़ार कर रहे थे.
भैया भाभी पर नज़र पढ़ते ही मै दौड़ कर जाकर
उनके गले लग गयी.
भाभी ने मेरे सर पर हाथ रखा और प्यार भारी नज़रो
से मेरी तरफ देखा.
मै फ़ौरन भाभी के भी गले लग गयी.
भैय्या ने मेरी तरफ देखा और प्यार से मेरे सर पर धीरे से मारा.
पगली रो क्यो रही हैं.
भाभी ने कहा फरहत तुम भी कमाल करती हो लोग बिछड़ते वक़्त रोते हैं.
और तुम हो की मिलते वक़्त रो रही हो.
भैया गाडी मै सामान रखते हुए बोले मेरी गुड़िआ सबसे अलग हैं.
भाभी आगे वाली सीट पर बैठ गयी.
वो मुझसे बार बार पूछती फरहत कुछ खाओगी तुम्हे पानी पूरी बहुत पसंद हैं.
फिर थोड़ी देर बाद इसक्रीम खाने को पूछती.
मै इंकार कर देती थीं.
मेरी आंखें बेचैन थीं. मै जल्दी से अपने घर पहुंचना चाहती थीं.
मेरे घर की दर ओ दीवारे मुझे बहुत ही अज़ीज़ी के साथ पुकार रही थीं.
और मै बेचैन थीं.
उन तक पहुंचने के लिए.
आखिरकार कुछ घंटो बाद मेरा घर आ गया था.
भीड़ भाड़ वाली दुनिया से बहुत दूर मै अपने वतन अपने घर आ गयी थीं.
हरे भरे खेत उन घरों तक पहुँचता हुआ एक संकरा सा रास्ता.
आज इनकी खूबसूरती कुछ ख़ास लग रही थीं.
मै बचपन से यंहा रही थीं.
लेकिन तब यंहा की वदीओ मै कुछ ख़ास नहीं लगता था.
लेकिन पता नहीं क्यो अब सब कुछ इतना प्यारा लग रहा था.
गाडी से उतरते ही मै अंदर चली गयी बायीं और मेरी पूसी हैप्पी खड़ी थीं.
मैंने उसे अपनी गोद मै बिठा लिया वो मेरे हाथों पर अपना सर रखकर बैठकर गयी.
शायद उसने मुझे पहचान लिया था.
रोज़ शाम के वक़्त छत पर बैठकर हम दोनों मोहम्मद रफ़ी के गाने सुनते हैं.
सुबह का नाश्ता हम दोनों साथ बैठकर करते थे.
मै अपने कमरे मै गयी मेरा कमरा बिलकुल वैसा ही था. जैसा मै छोड़ कर गयी थीं. मेरे बेड पर बिछी पिंक कॉलर की बेडशीट.
पिंक पिल्लो कवर उसपे रखे पिंक टेड्डी जो मुझे बहुत प्यारे थे.
मेरे बाद भी भाभी ने मेरा कमरा वैसा ही रखा था.
जैसा मै छोड़ कर गयी थीं.
मैंने अलमारी खोली तो उसमे तीन गिफ्ट रखे थे.
वो मेरे भैय्या ने मेरे बर्थडे पर ख़रीदे थे.
मै तीन साल बाद अपने घर लौटी थीं
लेकिन यंहा आकर ऐसा लग रहा था.
जैसे एक नींद सो कर उठी होउ.
सब कुछ पहले जैसा था.
कुछ नहीं बदला था.
डिनर मै भाभी ने सारी मेरी पसंद की सब्ज़ियां बनाई थीं.
तीन साल पहले शाम के वक़्त हम लोग मार्किट जाकर पानी पुरु  खयाल करते थे.
पानी पूरी रेस मै भाभी फर्स्ट आती  मै सेकंड और भैय्या लास्ट बस यूँही ढेर सारी खुशियाँ के सांग ज़िन्दगी गुज़रते थे.
छोटा सा परिवार था हमारा
भैया ऑफिस चले जाते.
हम दोनों नन्द भाभी बैठ कर खूब बातें करते थे.
मुझे कभी भी एक दोस्त की ज़रूरत महसूस नहीं हुई
क्योकि मेरी भाभी ही मेरी दोस्त बन गयी थीं.
वो मॉ बनकर मुझे हिदायत देती. बहन बनकर मेरी सरहाना करती और दोस्त बनकर  मेरे साथ मस्तिया भी करती.
मेरे लिए मेरे भैया भाभी मेरी पूरी कयनात थे.
कुछ दिनों बाद भैया को मेरी शादी की फिक्र होने लगी.
लेकिन भाभी चाहती थीं.
एक दो साल अभी ना हो.
भैया रिश्ता बताते भाभी इंकार कर देती.
फिर भैया और भाभी खुद झगड़ते.
भाभी भैया से कहती.
अभी  क्या ज़रूरत हैं.
अभी फरहत बच्ची हैं.
वैसे भी वो हमसे इतने साल दूर रही और अब आप उसे और दूर करदो.
भैया भाभी को समझते.
निशा हकीकत को समझो बेटियां पराई होती हैं.
और हम दोनों को भी तो अपने फर्ज़ से अदा होना हैं.
भाभी को देखकर मेरी आंखे भर आती.
फिर मेरे मन मे ख्याल आता मे अपने भैया भाभी को छोड़ कर नहीं जाउंगी.
सुबह नाश्ते के वक़्त फ़ोन आया.
देहरादून से दादी का फ़ोन था.
बड़े पापा के बेटे आदिल की शादी थीं.
मेरे पापा देहरादून से थे.
मम्मी कश्मीरी थीं.
पापा जम्मू b.ed करने आये थे.
यही पर पापा ने शादी भी करली थीं.
मामी की काफी प्रॉपर्टी थीं.
इसी लिए भैया ने यही बिज़नेस शुरू कर दिया था.
शादी से दो दिन पहले हम लोग देहरादून पहुंच गए थे.
मेरे पापा का शहर बहुत खूबसूरत था.
दादी ने हमें देखते ही अपने सीने से लगा लिया था.
वो मेरे हाथों की हथेली को चूमती तो कभी मेरे बालो पर हाथ फेरती.
उनकी मोहबत मुझे मॉ जैसा सुकून दे रही थीं.
दादी ने भैया और भाभी को भी अपने गले से से लगा कर प्यार क्या और दुआएँ देने लगी.
हमारे आने से सब लोग बहुत ख़ुश थे.
यंहा आकर बहुत अच्छा लग  रहा था.
दादी की मोहब्बत अपने खानदाननिओ का साथ
मैंने सर्फ़ अपने भैया भाभी का ही प्यार पाया था.
लेकिन यंहा पर तो पुरे खानदान की मोहब्बत मिल गयी थीं.
बड़े पापा ने अपनी बेटी मरियम से मेरा ख्याल रखने को कहा था.
2 दिन बाद आदिल की शादी हो गयी थीं.
मुझे यंहा बहुत अच्छा लग रहा था.
आदिल का एक करीबी दोस्त गुलबाज़ जिससे मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी थीं.
वो मुझे अपने घर ले जाता कॉपी और कलम मेरे हाथों मे थमा कर कहता.
तुम मुझे कश्मीरी सिखाओ.
मे उस से कहती गुलबाज़ तुम कश्मीरी सीख कर क्या कररोगे.
वो मुस्कुरा के कहता फरहत इल्म जितना हासिल करो उतना कम होता हैं.
इंसान को हर ज़ुबान आनी चाहिए.
गुलबाज़ बहुत अच्छी बातें करता था.
आखिरकार मैं उसे कश्मीरी सिखाने के लिए तैयार हो गयी.
बदले मे उसने मुझे देहरादून घुमाने का प्रॉमिस क्या.
मे उसे कश्मीरी ज़ुबान सिखाती वो मुझे घुमाने के लिए लेकर जाता.
गुलबाज़ एक अच्छा लड़का था.
मेरा ख्याल रखता था.
मे उसकी बातो पर खिलखिलाकर हस पडती.
वो मेरी तरफ खामोश निगाहों से देखता मे दूसरी बात कहकर उसका ध्यान खुद से हटा देती.
नेक्स्ट डे हमारा टिम्बर मयूजियम जाने का प्लान था.
गुलबाज़ ने मुझे खुसबू रेस्टोरेंट मे आने को कहा था.
काफी वक़्त तक मे उसका इन्तिज़ार करती रही मगर वो ना आया. .
मे रेस्टोरेंट मे बैठी हुई थीं.
मैंने वेटर को आवाज़ लगाई.
योड वल.
वो आकर मेरे पास खड़ा हो गया था.
गोरा रंग भूरी आंखें लम्बी सी नाक देखने मे काफी खूबसूरत था.
मैंने उसे कॉफ़ी लाने को कहा था.
उसने कप लाकर मेरे सामने रख दिया.
मैंने जैसे ही कप मुँह से लगाया.
अरे ये तो नून चाय हैं.
यंहा मिलती हैं नून चाय.
वो मुस्कुराकर बोला नहीं
ये स्पेशल चाय सिर्फ तुम्हारे लिए हैं.
मैंने हैरत से उसकी तरफ देखा.
मेरे लिए
उसने  सर हिलाते हुए कहा ये कश्मीरी चाय सिर्फ तुम्हारे लिए हैं.
मे जानता हु ये चाय तुम्हारी परेशानी को ख़त्म कर देगी.
तुम्हे कैसे पता क्योकि मे जब् परेशान होता हु तब अपने लिए बना लेता हु.
मैंने उसे कहा तुम्हे कैसे पता
आप कश्मीर से हो इसलिए आप के लिए ले आया.
मैंने पूछा तुम्हे कैसे पता चला मे कश्मीर से हु.
वो पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया.
शायद आपको याद नहीं अभी आपने मुझे कश्मीरी मे बुलाया था.
ख़ैर आज अपने हमवतन से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
पराये शहर मे अपने वतन का कोई मिल जाये तो इस से बड़ी खुशनसीबी कुछ और हो ही नहीं सकती.
आपसे मिलकर खुशी हुई.
मैंने मुस्कुराते हुए कहा.
मुझे भी.
मैंने अपना पर्स उठाते हुए कहा.
अच्छा अब मे चलती हु.
शुक्रिया.
दूसरे दिन मॉर्निंग वॉक पर जाते वक़्त फिर से मेरी उसी लड़के से मुलाक़ात हो गयी थीं.
पहाड़ के एक टीले पर बैठकर हम दोनों बातें करने लगे थे.
वो मुझे अपने बारे मे बताता और मे उसे अपने बारे मे बताती.
इतने वक़्त की बात चीत के बाद भी अभी हम दोनों एक दूसरे के नाम से अनजान थे.
मैंने पहल करते हुए उससे पूछ ही लिया.
आपका नाम.
ओह सॉरी मैंने नाम तो बताया ही नहीं.
मे मुस्तफा.
जम्मू से हु.
यंहा से MBBS कर रहा हु.
मैंने पहाड़ो की तरफ निगाह करते
हम दोनों एक दूसरे से ऐसे घुल मिल गए थे.
जैसे बरसो से एक दूसरे को जानते हो.
उसके बात करने का अंदाज़ ही अलग था.
जो शायद मुझे धीरे धीरे अपनी तरफ खींच रहा था.
मुस्तफा गुलबाज़ की तरह ज़्यादा हस्ता मुस्कुराता नहीं था.
लेकिन बात को इतनी सन्जीदगी से कहता मनन करता वो बोलता ही रहे.
मुस्तफा गुलबाज़ की तरह मेरी केयर नहीं करता था.
लेकिन उसकी खामोश निगाहे मुझे स्पेशल फील करती थीं.
कभी कभी महफ़िल और हसीं से ज़ियादा तन्हाई और ख़ामोशी ज़ियादा अच्छी लगती हैं.
हम दोनों रोज़ मिलने लगे थे.
उसके साथ वक़्त बिताना अच्छा लगने लगा था.
जब् भी वो मिलता पहले सलाम करता.
अगर कभी भूल जाता तो मे कहती.
मुस्तफा आज तूमने सलाम नहीं क्या.
वो सर पर हाथ रखता और भोहों को ऊपर चढा लेता
फिर हलकी स्माइल के साथ सलाम करता.
मैंने मुस्तफा को कहा आज हम राजाजी नेशनल पार्क चलते हैं.
हम दोनों बातो मे मगन सडक के किनारे किनारे चले जा रहे थे.
वो मुझसे कहता.
फरहत बेगाने शहर मे हमवतन हमसफर से बढ़कर होता हैं.
जब्ब से तुम से मिला हु.
तब से मुझे अपने घर की याद ही नहीं आयी हैं.
मैंने अपने दुपट्टे को सर पर रखते हुए कहा.
सही कहा तूमने वतन की मोहब्बत आधा ईमान होती हैं.
जब् मे इंग्लैंड मे थीं.
तब् मुझे भी अपने वतन की बहुत याद आती थीं.
मुस्तफा ने मेरी तरफ देखा और कहा तुम ऑक्सफ़ोर्ड मे पढ़ी हो.
वैरी गुड
मैंने मौसम की तरफ देखा धुप धीरे धीरे अपना आँचल फैला रही थीं.
काफी देर हो गयी हैं
अब चले मैंने उठते हुए मुस्तफा से कहा.
मे घर पहुंची तो गुलबाज़ भैया और भाभी के पास बैठा बातें कर रहा था.
कैसी हो फरहत उसने मुझसे पूछा.
मे ठीक हु.
दादी ने कहा बेटा तुम फ्रेश हो जाओ मे नाश्ता लगा देती हु.
तुम्हारे भाई ने भी अभी नहीं क्या हैं.
सब लोग बैठकर नाश्ता करने लगे.
भैया ने गुलबाज़ को भी बिठा लिया.
फरहत तुम नाराज़ हो मुझसे.
सॉरी यार अर्जेंटली जाना पड़ गया.
मैंने नाश्ता करते हुए थोड़ी नाराज़गी बयान करते हुए कहा.
तुम्हे पता हैं.
मैंने कितना इन्तिज़ार क्या था तुम्हारा कमसे कम मुझे कॉल कर दी होती या एक मैसेज हो देदिया होता.
उसने सर को झुककर कहा सॉरी यार मे भूल गया था.
अब माफ़ भी करदो ना प्लीज.
दादी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा.
माफ़ करदो फरहत.
मैंने कहा ठीक हैं.
मैंने माफ़ क्या.
गुलबाज़ ने मुझसे कहा चलो आज मे तुम्हे मूज़ीयम
घुमा कर लाता हु.
मैंने टॉवल से हाथ साफ करते हुए कहा.
म्यूज़ियम तो मैंने घूम लिया.
उसने पूछा किसके साथ गयी तुम मरियम के
नहीं मेरा एक फ़्रेंड हैं.
उसने हैरत से पूछा इस शहर मे तुम्हारा फ़्रेंड.
हां अच्छा इंसान हैं.
गुलबाज़ मुझ पर चिल्ला पड़ा था.
तुम अनजान लोगो से दोस्ती रखती हो.
तुम्हे पता हैं.
आज कल का ज़माना कैसा हैं.
मैंने भी तेज़ आवाज़ मे गुलबाज़ से कह दिया था.
मे बच्ची नहीं हु.
अपना अच्छा बुरा बेहतर जानती हु.
कहकर मे अपने कमरे मे चली गयी.
शाम को मैसम बहुत प्यारा था.
ठण्डी ठण्डी हवाएं चल रही थीं.
हलकी बारिश की बुँदे पढ़ रही थीं.
मुस्तफा ने मुझे फ़ोन करके अपने हॉस्टल बुला लिया था.
हमदोना बाहर खड़े हलकी बूंदो मे भीग रहे थे.
मुस्तफा ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गार्डन मे ले आया.
फरहत तुम्हे पता हैं.
मुझे ऐसा मौसम बहुत अच्छा लगता हैं.
मनन करता हैं.
घंटो बैठ कर इन हलकी फुलकी बूंदो मे भीगता रहु.
इन ठण्डी और मनमौजी हवाओ को महसूस करता रहु.
मैंने अपने मुँह से बारिश की बूंदो जो साफ करते हुए कहा.
मुस्तफा तुम जॉब क्यो करते हैं.
तुम्हारे पास पैसे की कोई कमी नहीं हैं फिर भी.
उसने अपने बालो को हिलाते हुए कहा.
फरहत मेरे फ़्रेंड वहा जॉब करते हैं.
वो गरीब हैं.
मै उनके साथ वक़्त बिताने के लिए जॉब करता हु.
मुझे बहुत हैरत हुए थीं उसकी बात पर.
अच्छा ये सब छोड़ो मुस्तफा ने कहा तुम्हे अच्छा लगा मैंने पूछा क्या.
अरे मौसम और क्या.
मैंने कहा. अच्छा हैं.
अच्छा फरहत तुम जा कब रही हो
मुस्तफा ने पूछा था.
बिज़नेस दस दिन और हैं.
मेरी बात सुनकर वो खामोश हो गया था.
कुछ देर रुक कर बोला रुको यंहा कुछ दिन और फिर चली जाना.
मैंने सामने की तरफ देखते हुए कहा.
नहीं भैया को काम है बहुत.
मैने मुस्तफा से पूछा.
मै चली जाउंगी तुम मुझे याद कररोगे.
उसने कहा.
हम आपके हैं कौन
मै उसकी बात पर हस पड़ी
वो फिर बोला बताओ ना फरहत.
मैंने कहा हम दोस्त हैं.
उसने कहा नहीं.
हम दोस्त नहीं हैं.
दोस्ती मै तो बे तकलउफ़ी होती हैं.
ट्रस्ट होता हैं.
मैंने मुस्तफा से कहा.
करती हु मै ट्रस्ट तुम पर.
उसने मेरी आँखों मै देखते हुए कहा.
फिर तुम मेरे साथ उनकफोर्टटेबल महसूस क्यो करती हो.
मै खामोश हो गयी थीं.
उसने मुझे कहा फरहत हम दोस्त नहीं हैं.
और ना ही अजनबी हैं.
हम तो हमवतन हैं.
गैर वतन मै अपने वतन का ज़ब कोई मिल जाता हैं.
तो उससे थोड़ा लगाओ हो जाता हैं.
मुस्तफा के अलफ़ाज़ बिलकुल सही थे.
लेकिन मुझे बुरा क्यो लग रहा था.
बहुत ajeeb सा महसूस हो रहा था.
जैसे दिल किसी की खुवाहिश कर रहा हो और मै उसे नज़र अंदाज़ कर रही होउ.
सुबह मै जल्दी उठ गयी थीं.
रात को नींद भी देर से आयी थीं. आँखों मै हल्का सा भारीपन था.
बाहर से गुलबाज़ की आवाज़ आयी वो भैया और भाभी को डिनर पर लेकर लेकर जा रहा था.
उसने मुझसे भी कहा पर मेरी तबियत ठीक नहीं थीं.
मन भी नहीं था कही जाने का.
मेरे इंकार करने के बावजूद भी वो मेरा हाथ पकड़ कर ज़बरदस्ती ले गया था.
हम लोग उसी जगह थे.
जहाँ मुस्तफा जॉब करता था.
उसे सामने देख कर मैंने नज़रें नीची कर ली थीं
वो मेरे लिए एक कप नून चाये ले आया था.
बाकी चाइनेस कहा रहे थे.
गुलबाज़ ने मुझे चाये पीते देख अपने लिए भी एक चाय मंगवा ली.
पहला घुट भरा ही था.
गुलबाज़ उठकर खड़ा हो गया.
और वेटर वेटर चिल्लाने लगा.
मुस्तफा आकर वही पास खड़ा हो गया.
ये कैसी चाय  हैं.
इसमें चीनी की जगह नमक डाल दिया.
गुलबाज़ मुस्तफा पर चिल्ला रहा था.
मुस्तफा नज़रें नीची किये खड़ा था.
गुलबाज़ ने मुस्तफा पर हाथ उठाया ही था.
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.
पागल हो गए हो तुम.
ये कश्मीरी चाये हैं.
वो कुछ डालना नहीं भुला.
ख़बरदार जो तूमने इस पर हाथ उठाया तो.
मै बोल रही थीं.
सब सुन रहे थे.
मुस्तफा मेरी तरफ देख रहा था.
मै वहा से चल पड़ी.
अपने रूम मै आकर बैठ गयी थीं.
भाभी मरे पास आकर बैठ गयी.
फरहत वो लड़का कौन था.
मैंने कहा पता नहीं भाभी कौन था.
भाभी ने फिर कहा.
तुम्हे सच मै नहीं पता कौन था.
लेकिन मुझे तुम्हारे लहज़े से हमदर्दी की  महक नहीं बल्कि मोहब्बत की महक आ रही थीं.
2 दिन बाद हम लोग अपने घर वापस जाने लगे
मन बहुत उदास था.
निगाहे दरवाज़े की तरफ थीं.
जैसे किसी का इन्तिज़ार हो
दिल बेचैन था.
जैसे बहुत कुछ पीछे छूट रहा हो.
लेकिन क्या कर सकती थीं.
मुस्तफा को तो मुझसे मोहब्बत थीं ही नहीं.
जितनी भी मोहब्बत थीं.
तो वो हमवतन वाली थीं.
अचानक से गुलबाज़ और मुस्तफा मुझे आते हुए दिखे थे.
मेरा मन झूम उठा था.
गुलबाज़ ने मुझसे और मुस्तफा से माफ़ी मांगी
भैया ने मुस्तफा से कहा था.
अपने पेरेंट्स को लेकर आना.
बस हम दोनों हमवतन हमसफर बन गए थे.

फ़िज़ा 
उत्तरप्रदेश -  पीलीभीत 

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