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शिक्षक और सिस्टम Teacher and system लेखक ब्रह्मानंद गर्ग सुजल

 शिक्षक और सिस्टम


शिक्षा ही वह माध्यम है जो देश व समाज के लिए सुसभ्य और सुसंस्कृत नागरिक तैयार करती है। शिक्षा के अभाव में बालक का परिशोधित होना संभव नहीं। शिक्षा के बिना तो नर को पशु समान भी बताया गया है। कहना गलत नहीं होगा कि शिक्षा जीवन का एक अतिमहत्वपूर्ण पहलु है जो मनुष्य को जीवन जीने के लिए बेहतर ढंग से तैयार करती है। यह जरुरी नहीं है कि शिक्षा सिर्फ विद्यालय से ही प्राप्त की जाए, इसके और भी माध्यम हो सकते हैं। बालक की पहली पाठशाला उसका परिवार है और प्रथम शिक्षिका उसकी माता। परिवार से बालक काफी कुछ सीख कर ही आगे की राह तय करता है। बालक का आस पड़ोस और समाज भी एक अनौपचारिक शिक्षा केंद्र ही है जहाँ बालक जीवन से जुड़ी विभिन्न तरह की गतिविधियां सीख लेता है।जहाँ प्राचीन समय में शिक्षा के लिए आश्रम और गुरुकुल हुआ करते थे वहीं वर्तमान में ये कार्य शैक्षणिक संस्थानों का हैं। शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक एक महत्वपूर्ण कड़ी है जो बालक को शिक्षा और शिक्षाक्रम से भली भाँति अवगत करवाता है। शिक्षक का दायित्व बहुत बड़ा है उसका कार्य मात्र शिक्षा देना ही नहीं है वरन उस शिक्षा को बालक अपने भावी जीवन में उपयोग कर सके, इसके लिए भी बालक को तैयार करना होता है। इसी लिए प्राचीन समय से ही शिक्षक को महान दर्जा दिया गया है, राष्ट्र निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है। शिक्षार्थी जो शिक्षा पाने के लिए लाया गया हो, या शिक्षा पाने का जिज्ञासु हो। शिक्षक ऐसे जिज्ञासु प्रवृत्ति के शिक्षार्थी को अपने ज्ञान और व्यवहार से परिपूर्ण कर समाज और राष्ट्र को सौंपता है। वही बालक आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, आईएएस, आईपीएस,वैज्ञानिक, नेता, अभिनेता, मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर भी पहुँच जाता है। एक योग्य शिक्षक ही बालक में संपूर्णता का भाव उत्पन्न कर पाता है। वर्तमान में शिक्षक पर बहुत सी अनेकानेक जिम्मेदारियां लाद दी गई है जिनके बोझ तले शिक्षक अपने मूल कार्य शिक्षा से उदासीन होने को मजबूर है। पोलियो की खूराक के लिए शिक्षक को भार। मतदान प्रक्रिया तो शिक्षक की तैनाती। जनगणना, पोषाहार, टीकाकरण, विभिन्न तरह के सर्वे आदि कार्य हैं जिनमें शिक्षकों को व्यस्त कर दिया जाता है। इसके बावजूद परिणाम की गुणवत्ता हमें पूरी चाहिए ये समझे बिना कि इतने जिम्मेदारियों के मध्य ऐसा किस तरह मुमकिन होगा। न सिर्फ कार्य की अधिकता वरन शिक्षक समाज में उपेक्षा को भी झेलने पर विवश है। 2004 से शिक्षकों को मिलने वाली पेंशन पर भी रोक लगा दी गई है जो कि शिक्षकों में निराशा उत्पन्न करने का ही साधन बनी है। जो शिक्षक अपनी आधी से अधिक उम्र शिक्षा की सेवा में व्यतीत कर देता है उसे सेवानिवृत्ति पर सात सौ पेंशन पाने पर मजबूर होना पड़े तो आप अनुमान लगा सकते हैं उसकी मनोदशा क्या होगी।
ब्रह्मानंद गर्ग सुजल 
शिक्षक 
जैसलमेर, राजस्थान। 
9929079001

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