राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की हरफनमौला भूमिका
विश्व में सबसे बड़ी विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था भारत में है।यहां गुरुकुल व्यवस्था से लेकर आधुनिक विद्यालयों-विश्विद्यालयों तक का समृद्ध सफर रहा है। यहां की स्कूली शिक्षा का ढांचा बड़े शहरों से लेकर ठेठ गांव देहात तक फैला हुआ है।।जो देश में शिक्षा के स्तर व साक्षरता दोनों को तेजी से बढ़ाने में सहायक साबित हुआ।देश के शैक्षिक विकास में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण हैं।प्राचीन काल में गुरु विश्वामित्र,गुरु द्रोणाचार्य की भूमिका को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।यहां सावित्रीबाई फुले जैसी शिक्षिकाएं हुई है।आधुनिक शिक्षा प्रणाली में प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्विद्यालयों तक की शिक्षा व्यवस्था के दो मूल आधारभूत स्तम्भों में शिक्षक व शिक्षार्थी हैं।देश में आज की सुदृढ़ शिक्षा व्यवस्था को अगर सबसे ज्यादा किसी ने सींचा है तो वे हैं हमारे शिक्षकगण।एक बालक जो देश का भविष्य होता है उस बालक के मानस पटल को पढ़कर उनको योग्यता के अनुसार शिक्षा देकर एक सुनागरिक के रूप में तैयार करने में शिक्षकों का योगदान है।बालक बड़ा होकर किस राह पर जाएगा?उसका देश के विकास में क्या योगदान होगा?इन सवालों का जवाब सिर्फ यह है कि बालक का शिक्षक उसे शिक्षा देकर किस प्रकार का नागरिक बना रहा है।राष्ट्र में शिक्षित, विचारशील व मानवीय मूल्यों से परिपूरित समुदाय का निर्माण हो जहां जातियता,धार्मिक भेदभाव रहित भाईचारे व सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण आवश्यक हैं उसी से देश में गंगा-जमुनी तहज़ीब जिंदा रह सकती है।यह तभी सम्भव होगा जब हमारे देश के शिक्षक उच्च आदर्शों का बीजारोपण छात्रों में करें।छात्रों को उनकी क्षमता व रुचि के अनुरूप आवश्यकता अनुसार उपयोगी राह दिखाकर उन्हें सुनागरिक बनाएं।बालकों में कर्मशील नागरिक के गुण विकसित हो जिससे वे सिर्फ नौकरी की चाह में नहीं एक सुनागरिक व दक्षतापूर्ण व्यक्ति बन सकें व उनमें वैज्ञानिक सोच पैदा हो सकें।आज शिक्षा में केवल किताबी अक्षर ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है,वर्तमान में जीवनोपयोगी व मूल्यपरक शिक्षा की महत्ती आवश्यकता हैं।इस क्षेत्र में शिक्षकों को अपने ज्ञान में निरंतर नये आयामों को शामिल करते हुए शिक्षा को आधुनिक ढांचे में ढालना होगा जहां से बालक सिर्फ नौकर बनकर न निकलें बल्कि एक ऐसा सुनागरिक बनकर निकले जो अपनी कर्मशीलता व वैज्ञानिक सोच से देश के भविष्य को सुदृढ़ कर सकें।शिक्षा प्रणाली में नवाचार व नवीन शिक्षण प्रविधियों का समावेश कर शिक्षक यह कार्य कर सकतें।देश में बड़ी संख्या शिक्षक ऐसे नवाचार कर रहें है जिनकी बदौलत आज शिक्षा के वैश्विक परिदृश्य में भारत भी महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं।वर्तमान संदर्भ यह जरूरी हो जाता है कि शिक्षक अपने कौशल का निरंतर परिमार्जन करते रहें अपनी प्रोफेशनल योग्यताओं को समय समय पर परखते रहें।शिक्षक को सदैव एक विद्यार्थी बनकर रहना होगा तभी आधुनिक शिक्षा पद्धति के विकास में वो अपनेआप को सही साबित कर पायेगा। बेशक! हमारा अतीत गुरुकुलों के काल से शैक्षिक क्षेत्र में भी स्वर्णिम रहा है,लेकिन वर्तमान संदर्भ में जहां ई- बुक के जमाने में हमें परम्परागत शिक्षण कौशलों से आगे बढ़कर शिक्षा में नवचारपूर्ण प्रविधियों को शामिल करना समय की मांग है जो शिक्षकों को स्वीकार करनी होगी तभी वो "गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः"वाली उक्ति को चरितार्थ कर पायेगा।हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे आधुनिक टेक्नोफ्रेंडली शिक्षकों की बड़ी तादाद भी देखने को मिल रही है जो देश के सुखद शैक्षिक भविष्य की ओर सकारात्मक संकेत हैं।
मूलाराम माचरा
शिक्षक
बाड़मेर राजस्थान
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