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वास्तविक मुद्दों को गुमराह कर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति

आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहाँ सभी वर्गों,जातियों एवं सम्प्रदायों से जुड़े लोगो को अपनी बात कहने और अपना पक्ष रखने की स्पष्ट रूप से स्वतंत्रता है।
लेकिन,अगर हम भारत देश की वर्तमान राजनीति की बात करते है तो दिलो-दिमाग में बहुत ही नकरात्मक छवि सामने आती है क्योंकि आज की राजनीति का स्तर दिनोंदिन नीचे गिरता जा रहा है और वर्तमान राजनीतक छवि पूर्णतया दूषित होती जा रही है।
राजनीति के इस गिरते हुये स्तर के कारण जनमानस की वास्तविक एवं मूलभूत आवश्यकतायें और प्रमुख मद्दे गायब होते जा रहे हैं।
राजनीति के ठेकेदारों के द्वारा जनता को सिर्फ वायदों का लालच देकर ठगा जाता है और इस तरह उनके साथ सिर्फ और सिर्फ छलावा ही किया जाता है।
राजनेता एक-दूसरे पर व्यक्तिगत रूप से टिप्पणियाँ कर
सिर्फ जनता को गुमराह करते है। समाज पर किन मुद्दों पर वास्तविक रूप से बहस एवं चर्चा होनी चाहिये इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें तो बस अपना उल्लू सीधा करने से मतलब है उन्हें न ही जनता के मुद्दों पर प्रकाश डालने से मतलब है और न ही जनमानस की समस्याओं का यथाउचित निवारण करने से।

चुनावी रण के समय जब अपनी बातों को जनता के समक्ष रखते है तो वादों का पिटारा उतावलेपन में ऐसे खोलते है जैसे बस जीतने के बाद बड़ी तेजी से किये हुये वादों पर शीघ्रतापूर्वक अमल करेगे और जो सारे मुद्दों का जिक्र किया है उन मुद्दों को भी विशेष रूप से पूरा करेगे लेकिन चुनाव जीतते ही उनके रंग एवं ढंग दोनों में अद्भुत परिवर्तन आ जाता है,मुद्दों की बात तो दूर है वो तो सुनने और पहचानने से भी साफ इंकार कर देते है पाँच साल तक के लिये।
अब राजनीति का मकसद सेवाभाव न होकर जातिगत भेदभाव व व्यक्तिगत दोषारोपण पर निर्भर होता जा रहा है। भारत जैसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में जनता ही सर्वोपरि है पर वर्तमान समय में गौर करे तो परिणाम बिल्कुल इसके विपरीत ही प्राप्त हो रहे है। लोकतंत्र की वास्तविक मजबूती के लिये आवश्यक कदम यह है कि जनता को मतदान के साथ-साथ चुनें गये प्रतिनिधि से पाँच साल का हिसाब लेना जरूरी है ताकि राजनीति में हो रही गिरावट और भ्रष्टाचार में कुछ हद तक सुधार लाया जा सके क्योंकि राजनीति का गिरता हुआ स्तर समाज और देश के लिये चिंता का मुख्य विषय है।
राजनीति मे व्यक्तिगत रूप से टिप्पणी का कोई स्थान नही होना चाहिये लेकिन राजनेता विकास और मुद्दों पर चर्चा करते कम दिखते है मगर पक्ष और विपक्ष पर जमकर व्यक्तिगत आलोचना और टिप्पणियों भरा प्रहार करते है जबकि राजनेताओं  को किसी पर व्यक्तिगत प्रहार करते समय वाणी और भाषा के दूषित प्रयोग से बचना चाहिए।
 राजनेताओं को पक्ष-विपक्ष पर व्यक्तिगत टिप्पणी रूपी बहस को छोड़कर असली बहस जनता के विकास के मुद्दों पर करनी चाहिये और मजबूती के साथ जनमानस की सारी समस्याओं का समाधान बड़ी तल्लीनता और ईमानदारी के साथ करना चाहिये।
 लोकतंत्र में सभी की हिस्सेदारी से ही देश को विकसित बनाया जा सकता है जनता का काम केवल मतदान करना नही होता बल्कि अपने अधिकारों के लिये आवाज उठाना और जरुरती मुद्दों पर विकास के लिये जागरूक हो अपने कार्यों की पूर्ति कराना है तब जाकर राजनेताओं को आपके अधिकारों और ताकत का वास्तविक अंदाजा हो पायेगा और भारत देश मजबूती के साथ विकास पथ पर प्रशस्त हो सकेगा।

-©शिवांकित तिवारी "शिवा"
      युवा कवि एवं लेखक
      सतना (म.प्र.)
सम्पर्क:-9340411563

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