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क्या नाम दे इसे kya naam de

क्या नाम दे इसे

दिल को अब,
कैसे हम समझाए ।
वो मानता ही नही है।
और न ही जनता है ।
बस नाम, तेरा ही लेता है,
तेरा ही लेता है ।।

यार करू तो क्या करूँ ।
जो अपनी दोस्ती,
अमर हो जाये।
कोई तो बात है,
 हम दोनों में ।
जो हम लोग,
 कह नही सकते ।
पर दिलों में,
मेहसूस करते है।
अब इसे क्या नाम दे
 हम ।
खुद बता भी तो
नही सकते।।

जब से तुमने,
अपना दोस्त बनाया है।
मेरी तो शैली,
ही बदल गई।
पहले लिखता था,
में कुछ भी।
अब तो सिर्फ तुम पर,
और,
 तुम्हारी प्यारी दोस्ती
 पर लिखता हूँ।
क्या नाम दू में इससे
अब ।
 तुम खुद ही बता दो?
जो बात दिल मे है,
 उससे हमे बता दो,
हमे बता दो ।।

संजय जैन (मुम्बई)

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