महावीर प्रसाद द्विवेदीयुग1900-1918, jagarankaal, sudhaar kaal, द्विवेदी युग, dviwedi yug, जागरण काल, सुधार काल, नयी धरा : द्वितीय उत्थान , adhunik kal, mahavir prasad dwivedi, sarsvati patrika, सरस्वती पत्रिका , dviwedi yug ke kavi, dwivediyugin kavi, द्विवेदी युगीन कवि, dviwedi yug ka samay, द्विवेदी युग का समय।
महावीर प्रसाद द्विवेदीयुग (1900-1920)
आधुनिकयुग के द्वितीय उत्थान का समय सन 1900 से 1918 तक माना जाता है। भारतेंदु के बाद दो दशकों पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का प्रभाव पड़ा। इसीलिए इस युग को द्विवेदी-युग कहा जाता हैं। द्विवेदी युग को जागरण काल, सुधार काल, नयी धरा : द्वितीय उत्थान आदि अन्य नामो से भी जाना जाता है।
सरस्वती' पत्रिका के संपादक के रूप में महावीर प्रसाद द्विवेदी उस समय पूरे हिंदी साहित्य पर छाए रहे। महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से ब्रज-भाषा हिंदी कविता से हटती गई और खड़ी बोली ने उसका स्थान ले लिया। भाषा को स्थिर, परिष्कृत वं व्याकरण - सम्मत बनाने में महावीर प्रसाद द्विवेदीयुग ने बहुत परिश्रम किया। कविता की दृष्टि से वह इतिवृत्तात्मक युग था। आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम वगैरह कविता के मुख्य विषय थे।
नीतिवादी विचारधारा के कारण शृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। भाषा खुरदरी और सरल रही। मधुरता एवं सरलता के गुण अभी खड़ी-बोली में आ नहीं पाए थे। सर्वश्री मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि हैं। जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ने इसी युग में ब्रज भाषा में सरस रचनाएं प्रस्तुत कीं। इस युग के प्रमुख कवि-
द्विवेदी युग के प्रमुख कवि/ Dwivedi yug ke kavi
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
रामचरित उपध्याय
जगन्नाथ दास रत्नाकर
गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही'
श्रीधर पाठक
राम नरेश त्रिपाठी
मैथिलीशरण गुप्त
लोचन प्रसाद पाण्डेय
सियारामशरण गुप्त आदि
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