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मां कात्यायनी maa katyayni ( कविता)

              माँ कात्यायनी

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चतुर्भुज धारी,सिंह पर सवारी
माता कात्यायनी है हमारी।
कात्यायनी माँ नव दुर्गा का छठा स्वरूप,
माँ का रूप है अनूप।
कान में कुंडल ,नाक में नथिया
चकमक चमके माथे पर बिन्दिया ।
गला शोभे मोती हार हैं हमारी आधार,
मनचाहा फल देकर करती उपकार।
पैर में पायल ,हाथ स्वर्णक बाला
जागृत होती रुनझुन  ,खनखन से हर शाला।
लाल चुनरी ओढे माँ है दैदीप्यमान ,
माँ कत्यायनी के आशीष से पाएंगे सम्मान।
माँ कात्यायनी है अमोघ फलदायनी,
लाल-लाल फूल से पूजा करेंगी सुहागिनी।
मधुर संग मधु , हल्दी की थाल सजाकर ,
अर्चना करेंगे माँ को भोग लगाकर।
धूप, दीप, कर्पूर जलाकर
मैया की आरती करेंगे , झूमझूम गाकर।
हम सब भक्त हैं दर्शन के अभिलाषी,
माँ का दर्शन कर जीवन सफल करते पृथ्वीवासी।
             रीतु देवी
       दरभंगा, बिहार
  . स्वरचित एवं मौलिक

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