दगड़ू
दगड़ू आज विहंसता है।
मिट्टी में भी सजता है।।
दूर अभी गम की छाया
गम न उसे सता पाया
कैसी दुनिया कैसी माया
मृदा से सजती काया
प्यार सभी का उसपे आया
सोंच नहीं कोई क्या कहता है।। दगड़ू आज - - - -
कपड़े की परवाह नहीं है
बहुत कुछ चाह नहीं है
आगे का कुछ थाह नहीं है
किसी का हरवाह नहीं है
खेल के बाद राह नहीं है
हँस-हँस के पेट फटता है।। दगड़ू आज - - - -
उसका अपना फुच्चे संगी
वो भी बड़ा ही बहुरंगी
काम करे सदा बेढंगी
माँ कहती है हरहंगी
लड़ने में दोनों हैं जंगी
बात-बात में लड़ता है।। दगड़ू आज - - - - - -
पूरा पंक है तन पे पोते
अपनी वाली हरदम जोते
खाता खाना रोते - रोते
सुनता लोरी सोते-सोते
थकती मम्मी कपड़े धोते
बात - बात में अकड़ता है।। दगड़ू आज
स्वरचित मौलिक ।। कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)
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