विश्व का पहला महाकाव्य
भारत देश ऋषि मुनियों व तपस्वीयों का देश रहा हैं। दिव्य भारत भूमि पर कई महान ऋषियों की तपोभूमि व कर्म भूमि रही हैं। पिछले दिनों हमने ज्योतिष शास्त्र के प्रधान प्रवर्तक व महान महर्षि गर्गाचार्य ऋषि, महर्षि दधीचि, श्री विश्वकर्मा जी आदि के जन्मोत्सव मनाएं इसी कड़ी में शरद पूर्णिमा यानि 13 अक्टूबर को महर्षि ‘वाल्मीकि जयंती’ को ‘बाल्मीकि जयंती’ के नाम से भी जाना जाता है। इसे प्रसिद्द कवि महर्षि वाल्मीकि के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। यह हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। महर्षि वाल्मीकि को ‘आदि कवि’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वह प्रथम कवि थे जिसने प्रथम श्लोक की खोज की। वाल्मीकि जयंती पूरे भारतवर्ष में मनाई जाती है किन्तु उत्तर भारत में यह विशेष रूप से मनाई जाती हैं। उत्तर भारत में यह दिवस ‘प्रकट दिवस’ के रूप में प्रसिद्द है। वाल्मीकि जयंती के दिन विविध आयोजन होते हैं। जगह-जगह से शोभा-यात्रा निकाली जाती है। महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा स्थल पर फल वितरण एवं भंडारा का आयोजन होता हैं। महर्षि वाल्मीकि का जीवन दर्शन यह प्रेरणा देता है कि सच्चाई के रास्ते पर चलकर ही मानव महापुरुष बन सकता है। यह दिन सत्कर्म को प्रेरित करता हैं। महाऋषि वाल्मीकि केवट जाति के थे। उनके जीवन के बारे में एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है। एक बार तमसा नदी के तट पर महाऋषि वाल्मीकि एक क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े को प्रेम करते हुए देख रहे थे। तभी एक बहेलिया (शिकारी) ने वहां आकर एक नर सारस पक्षी को मार दिया। मादा सारस पक्षी विलाप करने लगी। इससे क्रुद्ध होकर महाऋषि वाल्मीकि ने बहेलियों को श्राप दिया और कहा-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्
अर्थात हे बहेलिये! तूने काममोहित पक्षी का वध किया है इसलिए तुझे कभी भी सम्मान और प्रतिष्ठा नही मिलेगी” ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होने “रामायण” जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की। वाल्मीकि राम के समकालीन थे। जब श्रीराम से सीता का त्याग कर दिया था तब महाऋषि वाल्मीकि ने ही इनको आश्रय दिया था। उनके आश्रम में ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया। जब श्रीराम से अश्वमेध यज्ञ किया तो लव कुश ने वाल्मीकि के आश्रम में यज्ञ के घोड़े को बाँध लिया। बाद में उन्होंने लक्ष्मण की सेना को पराजित कर अपना शौर्य दिखाया।
महर्षि वाल्मीकि को श्री राम के जीवन की हर घटना का ज्ञान था। इसी आधार पर उन्होंने “रामायण” ग्रंथ की रचना की। इसमें कुल 24000 श्लोक है और 7 अध्याय है जो कांड के नाम से जाने जाते है। इस ग्रंथ से त्रेता युग की सभ्यता, रहन सहन, सस्कृति की पूरी जानकारी मिलती है। महर्षि वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र “वरुण” के पुत्र थे। वे एक महान तपस्वी थे। ऐसा मत है की अपने जीवन के आरम्भिक काल में वो “रत्नाकर” नाम के डाकू थे जो लोगो को मारने के बाद उनको लूट लिया करते थे। वे अपने परिवार का भरण पोषण के लिए ऐसा काम करते थे। एक बार इन्होने नारद मुनि को बंदी बना लिया। नारद ने पूछा कि ऐसा पाप कर्म क्यों करते हो? रत्नाकर बोले “अपने परिवार के लिए?” नारद पूछने लगे कि क्या तुम्हारा परिवार भी तुम्हारे पाप का भागीदार बनेगा। “हाँ, बिलकुल बनेगा” रत्नाकर बोले। “अपने परिवार से पूछकर आओ क्या वो तुम्हारे पाप कर्म के भागीदार बनेगे। अगर वो हाँ बोलेंगे तो मैं तुमको अपना सारा धन दे दूंगा” नारद मुनि कहने लगे। लेकिन जब रत्नाकर घर जाकर वही सवाल करने लगे तो किसी ने हाँ नही की। उनको गहरा धक्का लगा। उन्होंने चोरी, लूटपाट, हत्या का रास्ता छोड़ दिया और तपस्या करने लगे। नारद मुनि ने इनका ह्रदय परिवर्तन किया था और श्री राम का भक्त बना दिया था। सालो तक तपस्या करने के बाद आकाशवाणी ने उनका नया नाम “वाल्मीकि” बताया था। इन्होने इतनी गहरी तपस्या की थी कि इनके शरीर में दीमक लग गयी थी। ब्रह्मदेव ने इनको ज्ञान दिया और रामायण लिखने की प्रेरणा दी। यह जयंती हर साल अश्विन महीने की पूर्णिमा को देश भर में धूम धाम से मनाई जाती है। “महर्षि वाल्मीकि” की प्रतिमा पर माल्यार्पण और सजावट करके जगह-जगह जुलूस, झांकियां और शोभायात्रा निकाली जाती है। लोगो को बहुत उत्साह रहता है। भक्तगण गीतों पर नाचते, झूमते रहते हैं। इस अवसर पर श्री राम के भजन गाये जाते हैं। यह दिन एक पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। महर्षि वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
महर्षि वाल्मीकी का जीवन चरित्र -
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो, इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए। इस पर नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। वहां जाकर वह यह जानकर स्तब्ध रह गए कि परिवार का कोई भी व्यक्ति उसके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। लौटकर उन्होंने नारद के चरण पकड़ लिए। तब नारद मुनि ने कहा कि- हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो। इस तरह नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे। तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गया और निरंतर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए। वाल्मीकि रामायण- एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे, वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था। तभी एक व्याध ने क्रौंच पक्षी के एक जोड़े में से एक को मार दिया। नर पक्षी की मृत्यु से व्यथित मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि के मुख से खुद ही…
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।
नामक श्लोक फूट पड़ा और यही महाकाव्य रामायण का आधार बना।
महर्षि वाल्मीकि जयंती महोत्सव –
देश भर में महर्षि वाल्मीकि की जयंती को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। इस अवसर पर शोभायात्राओं का आयोजन भी होता हैं। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया हैं। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्मार्ग पर चलने की राह दिखाई। ऋषि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषियों में माने जाते हैं। आप संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में सुप्रसिद्ध हैं महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण [आदित्य] से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। मनुस्मृति के अनुसार प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि भी इन्हीं के भाई थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि कहते हैं कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ , नारद , पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है। बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम ‘अग्निशर्मा’ एवं ‘रत्नाकर’ थे। किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहाँ का भील समुदाय वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करता था। महर्षि वाल्मीकी का जीवन- वाल्मीकि ॠषि के जन्म को लेकर भी उसी प्रकार का विवाद है जैसा संत कबीर के बारे में है। वाल्मीकि का अर्थ चींटियों की मिट्टी की बांबी है। जनश्रुति के अनुसार एक भीलनी या निषादनी ने एक एक चींटियों की बांबी पर एक बच्चा पड़ा पाया। वह उसे उठा ले गई और उसका नाम रख दिया वाल्मीकि। एक अन्य किवंदंति का उल्लेख ऊपर किया ही जा चुका है कि वाल्मीकि ने एक स्थान पर बैठकर इतनी घोर तपस्या की थी कि उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई। उनकी ऐसी दशा देखकर लोग उन्हें वाल्मीकि बुलाने लगे। यह कथा भी प्रचलित है कि वास्तव में बाल्मीकि ब्राह्मण थे व एक भीलनी उन्हें चुराकर ले गई थी। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो? इस पर रत्नाकर ने उत्तर दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए। महर्षि वाल्मीकि जयंती पर उन्हे शत् शत् नमन ।
-✍🏻 सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
(सहायक उपानिरीक्षक -रक्षा सेवाऐं और
स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी, आकाशवाणी श्रोता )
निवास - 'श्री हरि विष्णु कृपा भवन '
ग्राम - श्री गर्गवास राजबेरा, पोस्ट ऑफिस - ऊण्डू
तहसील उपखंड - शिव, जिला - बाड़मेर (राजस्थान)
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