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करवा चौथ लघुकथा

        करवा चौथ 


मालिनी आज नहा धोकर तैयार हो रही थी। तभी फोन की घंटी घनघनाने लगी। मालिनी दौड़कर फोन रिसीव किया। अवधेश आज नौकरी पर से आने वाला है। मालिनी की उत्सुकता और बढ़ी हुई थी कि कहीं उनका ही फोन तो नहीं है और मैं मिस कर जाऊँ। बात एकदम सही ठहरी वह अवधेश का ही काल था उन्होंने बताया मै साम 8 बजे उस्का बाजार स्टेशन पर ट्रेन से उतरूंगा। यह सुनते ही मालिनी के शरीर के सारे रोये-रोयें खड़े हो गये। मालिनी ने कहा मै तुझे स्टेशन लेने जरूर पहुंचूगी क्योंकि आज करवा चौथ है। आप के लिए मै व्रत उपवास कर रही हूँ, मै अपने चाँद की अगवानी करने रेलवे स्टेशन जरुर आउंगी। इतना कहने के बाद काल कट गयी।

                 साम का समय हो रहा है। मालिनी अवधेश को लेने के लिये तैयार होकर रेलवे स्टेशन के लिए चल दी। ट्रेन आने में 5 मिनट शेष था। अवधेश भी ट्रेन में अपना सामान इकट्ठा कर रहा था। ट्रेन केवल 2 मिनट ही स्टेशन पर यहाँ रुकती थी इसलिए पूरे ट्रेन में अफरा-तफरी मची थी। अवधेश के मिलन के लिए बेताब मालिनी ट्रेन के हर डिब्बों पर नजरें गड़ाए हुए थी पर अवधेश कहीं दिखाई नहीं पड़ा। ट्रेन भीड़ से कसी हुई थी लोग उतर रहे थे तथा ट्रेन का जाने वाली हार्न भी बज गया तथा ट्रेन रेंगने लगी। तब अवधेश की नजर मालिनी पर, मालिनी की नजर, उतरते हुए अवधेश पर पड़ी। ज्यों ही अवधेश प्लेटफार्म पर एक पैर रखा उसके पैर के नीचे केले का छिलका पड़ा एवं उसका पैर फिसल गया वह प्लेट फार्म के नीचे चला गया। यह देखकर मालिनी मुर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ी तथा प्लेट फार्म पर हाहाकार मच गया। थोड़ी देर बाद ट्रेन चली गयी अवधेश रेल के दोनों पटरियों के बीच सुरक्षित पड़ा रहा ट्रेन के जाने के बाद वह वहां से बेहोश मालिनी के पास पहुंचा तथा उसके मुख पर पानी का छीटा दिया। थोड़े देर में उसे होश आ गयी। अवधेश को देखते ही मालिनी उसके सीने से चिपक गयी। अवधेश मालिनी को थपथपाते हुए कहा कि सब तेरे "" करवा चौथ "" का प्रताप है जो मुझे काल के मुख से बचा लिया।

स्व लिखित                      ।। कविरंग।।
                 पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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