अंतरजातीय विवाह औऱ बवाल
अंतरजातीय विवाह सदियों पहले भी होता था आज भी होता हैं कभी भागकर प्रेम विवाह करते हैं कभी खुशी खुशी करते हैं। राजा महाराजा ऋषी मुनि तक अनेकों दासियों के साथ रंगरलियां मनाते थे अनेक साक्ष्य देखने को मिल जाते हैं जो दुसरे जातियों की होती थी और शुद्र जब राजा बनाता वो भी यही करता है तब यह वर्चस्व पर आधारित था और आज भी जिसकी लाठी उसकी भैस। इस प्रकार यह अंजरजातीय विवाह या प्रेम दोनों सदियों से होता आ रहा हैं। पहले लोग जो छुपकर व्याह रचाते थे वही गन्धर्व विवाह कहलाता था फिर भी कुछ अंतरजातीय विवाह विवाद का रूप क्यों ले लेता? क्या कभी सोचा हैं आपने? इसका उत्तर बहुत ही सीधा सरल हैं और आप भी जानते है इसके पीछे केवल एक ही कारण हैं इंसान का इंसान से भेदभाव। अंतरजातीय विवाह या प्रेम वो हैं जिसमें समाज ने सभी मानव को विभिन्न धर्मों जातियों में बांट दिया हैं और समाज द्वारा बांटे गये जाती धर्म को छोड़कर किसी दूसरे जाती में विवाह अथवा प्रेम करना अंतरजातीय विवाह या प्रेम है। इस प्रकार के सभी विवाह अथवा प्रेम विवाद का मुद्दा नहीं बनता हैं क्योंकि अगर लड़का समाजिक दृष्टि से किसी उच्च जाति वर्ग का प्रतिनिधि करता हैं और वो किसी निम्न जाति वर्ग की स्त्री से विवाह करे, प्रेम करे या खिलवाड़ करे तो भी बवाल नहीं होता हैं। यहीं नहीं कई बार ऐसा भी होता हैं निम्न वर्ग (छुद्रवर्ग) का लड़का दौलतमंद हैं तो उच्चवर्गीय प्रतिनिधि वाले ही खुशी खुशी बेटियों का सौदा कर देते हैं यह तो एक ही धर्म की बात हैं वो इतने गिर जाते है की अपने फायदे को देख दूसरे धर्म सम्प्रदाय में भी सौदा राजी खुशी करते है। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखने पर एक एक परत खुलकर सामने आती हैं सत्ता के लिए हमेशा से ही बेटियों का सौदा किया हैं वो सौदा करने वाले कौन होते हैं? सत्ता के लोभी बाप भाई ही होते हैं लेकिन वही आज या सदियों पहले भी लड़की अपनी मर्जी से किसी निम्न वर्ग या यूं कहें छुद्रों के लड़कों से विवाह या प्रेम करे औऱ लड़का निर्धन हो तो ये मुद्दा तबाही का कारण बन जाता हैं लड़कियां कलंकनी कुलक्षणी कहलाने लगती हैं ये बवाल इतने पर खत्म नहीं होता कई बार गाँव के गांव बर्बाद हो जाते हैं औऱ ऐसे में ये समाज प्रेमी जोड़े को सदियों से जातिवाद की अग्नि में बलि चढ़ाते आई हैं। अंतरजातीय प्रणय में घर-परिवार मोह माया के रिश्तों में उलझकर मान भी जाये तो समाज बिरादरी नहीं मानती हैं मौके के फ़िराक में हमेशा लगी रहती हैं जैसे ही हाथ लगे खेल खत्म कर दिया जाता हैं कई बार इसका बदला दूसरे की बेटी का बलात्कार से लिया जाता हैं। इंसान का इंसान से ये नफ़रत की कहानी आज की नई नही जन्मी हैं बल्कि सदियों पुरानी हैं जो आजतक चली आ रही हैं।
राजू कुमार "मस्ताना"
छपरा (बिहार)
छपरा (बिहार)
No comments:
Post a Comment