संवेदनाएं बाकि हैं
लंबे अरसे से बीमार अम्मा जी आज सुबह चल बसीं। पड़ोस की कोई महिला कह रही थी-"चलो बहुत अच्छा हुआ।बेचारी को मुक्ति मिल गई।इस उम्र में अगर शरीर अशक्त हो जाये तो भुगतना ही तो है।"
उनकी बात सुन रही बहु ने कहा,"आंटी जी, वे क्या भुगत रहीं थीं।हम सेवा करने वाले ही भुगत रहे थे। इनके चक्कर में हमने कितना पैसा बहाया है।"
पड़ोसन जानती थीं कि अम्मा जी की कैसी सेवा हो रही थी पर वह चुप रहीं।
तभी ननद ने कहा, भाभी,बाबूजी का पेंशन भी तो अम्मा को मिलता था।आप लोगों का पैसा थोड़े न गया। हां, अब अम्मा नहीं रही तो उनके सारे जेवर मुझे दे दीजियेगा क्यों कि माँ के जेवर पर बेटी का हक होता है।"
तभी बेटा जमीन का कागजात ढूंढ कर ले आया। जिसमें जमीन और मकान अम्मा के नाम की थी। वह परेशान सा बोला,"क्या होता अगर अम्मा ने जीते जी यह जमीन मेरे नाम कर दी होती?"
तभी अम्मा की लाश पर पालतू कुत्ता मोती चक्कर लगाने लगा और अपनी मालकिन के पैरों के पास बैठकर आंसू बहाने लगा। इधर अम्मा का पालतू तोता भी तेज आवाज में अम्मा -अम्मा रटने लगा।जैसे कह रहा हो 'मेरी मालकिन को क्या हुआ है?'
ये पालतू पशु पक्षी सचमुच अम्मा के मरने पर अपना दुःख व्यक्त कर रहे थे।
कुत्ते को इस तरह रोते देखकर दास बाबू ने कहा,"अरे, देखो, अम्मा जी के मरने पर यह कुत्ता कितना दुःखी है।इतना दुःख तो अम्मा के बेटे -बेटी को भी नहीं है।मनुष्यों से अच्छे तो ये पालतू जानवर हैं जिनमें अभी भी संवेदनाएं बाकि हैं।"
यह सुनकर वहाँ मौजूद लोगों ने मौन समर्थन किया।
डॉ. शैल चन्द्रा
रावण भाठा, नगरी
जिला- धमतरी
छत्तीसगढ़
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