मानवता का दीप जलाकर
परमात्मा के पास पहुंचा हुआ भक्त परमात्मा रूपी दर्पण में अपने अंतस को निहारता है और उसमें जो दाग लगे हुए हैं उनको प्रक्षालित करता हैं। वह सुख-शांति का अनुभव करता हैं। शांति बाहर नही अपने अंदर है। भौतिक संसाधनों में शांति नहीं हैं। शांति कैसे प्राप्त हो इसके लिए शांति के साधनों को अपनाना होगा। शांति के लिए मानवता का विकास जरूरी हैं। मानव के अंदर जब तक मानवीयता का दीप नहीं जलेगा तब तक शांत की अनुभूति आप कर नहीं सकते। आप घर-घर में अशांति, समाज, गांव, नगर, देश, राष्ट्र में अशांति है उसका मूल कारण मानवीय गुणों का अभाव हैं। दया, करूणा, वात्सल्य अगर परस्पर में है तो कभी बैर भाव की ग्रन्थियां नहीं बधेंगी और अगर प्रेम, वात्सल्य नहीं हैं तो कोई भी बात होने पर आप तुरंत आवेश में आकर अपनी तथा परिवार की शांति भंग कर देते हैं। आज आवश्यकता है राम-लक्ष्मण-सीता के आदर्शों को अपनाने की। आप रामायण सीरियल कथा आदि देख चुके हैं पर उनके आदर्शों को आप अपनाने का प्रयास नहीं करते। घर-घर में अगर राम - लक्ष्मण और सीता जैसे सदस्य होंगे तो निश्चित शांति का का प्रश्न हल हो सकता हैं। आप अगर दूसरों का कष्ट दूर करते हैं, दूसरों की पीड़ा हरते हो तो आप स्वयं अपने आप में सुखद अनुभव करते हैं। और आप किसी को कष्ट पहुंचाते हैं, कटुवचन बोलते हो तो मन की प्रशस्तता आपकी उस समय छिन जाती है । स्वभाव की ओर आने में शांति है विभाव की ओर जाने में अशांति हैं। अहिंसा स्वभाव है और हिंसा विभाव हैं अत: स्वभाव को आप अपनायें विभाव को ठुकराये तभी शांति आपको मिल सकती हैं। शांति के लिये दृष्टिकोण साफ करनें की आवश्यकता है। आज व्यक्ति की दृष्टि साफ नहीं रही फलस्वरूप अशांति उसके द्वार पर दस्तक देती है। अगर आपके अंदर छोटे बड़ों के प्रति, अपने बच्चों व देवरानी के बच्चों के प्रति भेद है तो घर में परस्पर में लड़ाई आरम्भ हो जाती है। सभी के प्रति अगर आपकी समान दृष्टि है तो परस्पर में प्रेम वात्सल्य रहेगा। दृष्टिकोण को साफ करने के लिए स्वावलंबन, पुरूषार्थ तथा स्वतंत्रता जरूरी हैं। मंदिर संबंधी क्रियाओं में वैज्ञानिक रहस्य छिपा है। मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व हम हाथ-पांव धोते हैं जैसे ही आप हाथ-पैर धोते हैं वैसे ही शरीर में विद्युत का प्रवाह होता है। हमें हर क्षेत्र में कार्य करते समय मन में राष्ट्रीयता व परोपकार की भावना उठनी चाहिए। मानवता का भाव होना चाहिए। मानवीय गुणों से संपन्न होकर देश, राष्ट्र की सेवा करने के साथ समाज सेवा करनी चाहिए। खुद से ऊपर उठकर परिवार, कुटुम्ब, समाज व राष्ट्र यानी देश, विश्व को मानवता के लिए जीएं।
फौजी साहब... सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
( सहायक उपानिरीक्षक - रक्षा सेवाऐं भारतीय थल सेना, स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी )
निवास - " श्री हरि विष्णु कृपा भवन "
ग्राम - श्री गर्गवास राजबेरा,
तहसील उपखंड - शिव,
जिला - बाड़मेर,
पिन कोड - 344701, राजस्थान ।
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