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मेरे दिल कर ले संतोष 'रावत'

मेरे दिल कर ले संतोष 'रावत'

अपने शब्द बोलने लगे तो, यह सागर है मेरे दिल ।
अगर यह महकने लगे तो, यह कविता है मेरे दिल ।
दहक जाये तो, बन जाते है अपने उद्गार मेरे दिल  ।
और जब यह ओढ़ लें, खामोशियों को तो है प्यार ।

राज! दर्द की छैनी जख्मों को, कुरेद कर ठीक करती है ।
और फिर ऐ! दिल बहक जाते है, अश्क से है मेरे दिल ।
एक फरिश्ता निकल आया है, शायद सागर  एक बूंद बनकर ।
चल आया है संतोष, दुनिया कि यह रूप देखने मेरे दिल ।


कि यह आखिर धरा उससे छोटी क्यों है? ऐ मेरे दिल ।
कितने ऐसे फरिश्तों ने जन्म लिया, है धरा पर मेरे दिल ।
और उन्हे छोड़कर चले गए, जिनमें अभी उन्हे मेरे दिल ।
फरिश्ते होने की, आखिर तलाश ही बाकी है मेरे दिल ।

दिल में रख संतोष राज,  धीरज धर चल कर मेरे दिल ।
प्रेम पंथी बनो, प्रेम पथ को चुनो, सब मेरे प्रेम मेरे दिल ।
दिल एक को दिया जाता है, वो भी नेक को दे मेरे दिल ।
यह प्रसाद न है कि,  प्रत्येक को दिया जाता है मेरे दिल ।

✍🏻 सूबेदार रावत गर्ग उण्डू, 
( सहायक उपानिरीक्षक - रक्षा सेवाऐं भारतीय थल सेना और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी )

निवास - श्री हरि विष्णु कृपा भवन "

ग्राम - श्री गर्गवास राजबेरा, 
पोस्ट ऑफिस - ऊण्डू , 
तहसील उपखंड - शिव, 
जिला मुख्यालय - बाड़मेर, राजस्थान ।

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