दिन ढ़ल गया
दिन ढल गया यूँ ही,
काम की भागा दौड़ी में,
लिए दिन भर की थकान,
आई अब सुहानी शाम,
लिए किसी की यादों का जाम,
सज गई रौशनी से,
अब वो मदभरी शाम,
वक्त गुजरा कैसे,
पता चला ही नहीं,
आई तारों भरी रात,
आंखों में नींद नहीं,
कहाँ अब तुझ बिन चैन
तारे गिन- गिन करते,
कब पलकें झपकी,
चल दिए नींद की आगोश में,
नींद में ख्वाब थे,
उन ख्वाबों में तुम थे,
और मैंने कर ली थी तुमसे,
अपने मन की सारी बात,
टूटे जब ख्वाब तो था,
एक खामोशी का आलम,
सुबह की उजली किरण में,
नजर आई थी तेरी ही परछाई......।।
परिचय-
मेरा नाम पूनम सिंह है । मैं हरियाणा के गुड़गांव में रहती हूँ । मैंने कला से ग्रैजुएशन किया है । कविता लिखने की अभिरुचि बचपन से ही रही है । फिलहाल मैं ढ़ाई बर्षों से लिख रही हूँ । मेरी कविताएँ साँची प्रकाशन की पुस्तक ' इश्क एक रंग अनेक', 'लाकडाउन ब्यथा,' 'अब आ जओ',कलम लाइव अकादमी की पुस्तक 'मजदुर ब्यथा', काव्य स्पंदन पत्रिका ,
द फेश आफ इण्डिया पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।
No comments:
Post a Comment