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जयशंकर प्रसाद आत्मकथ्य व्याख्या/ jayashnkar Prasad Aatmkathy vyakhya

जयशंकर प्रसाद आत्मकथ्य व्याख्या



मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य मलिन उपहास
तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।

संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित आत्मकथ्य  से ली गयी हैं जिसके रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रसंग:- कवि ने इस कविता में भौवरे के माध्यम से जीवन की नश्वरता का वर्णन किया हैं।
व्याख्या
भँवरे गुनगुनाकर पता नहीं अपनी कौन सी कहानी कहने की कोशिश करते हैं। शायद उन्हें नहीं पता है कि जीवन तो नश्वर है जो आज है और कल समाप्त हो जाएगा। पेड़ों से मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ शायद जीवन की नश्वरता का प्रतीक हैं। मनुष्य जीवन भी ऐसा ही है; क्षणिक।
इसलिए इस जीवन की कहानी सुनाने से क्या लाभ। यह संसार अनंत है जिसमे कितने ही जीवन के इतिहास भरे पड़े हैं। इनमें से अधिकतर एक दूसरे पर घोर कटाक्ष करते ही रहते हैं। इसके बावजूद पता नहीं तुम मेरी कमजोरियों के बारे में क्यों सुनना चाहते हो। मेरा जीवन तो एक खाली गागर की तरह है जिसके बारे में सुनकर तुम्हें शायद ही आनंद आयेगा।

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं।
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित आत्मकथ्य  से ली गयी हैं जिसके रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं।
प्रसंग:- कवि ने इस कविता में भौवरे के माध्यम से जीवन की नश्वरता का वर्णन किया हैं।
व्याख्या:-
मेरे जीवन की कमियों को सुनकर ऐसा न हो कि तुम ये समझने लगो कि तुम्हारे जीवन में सबकुछ अच्छा ही हुआ और मेरा जीवन हमेशा एक कोरे कागज की तरह था। कवि का कहना है कि वे इस दुविधा में भी हैं कि दूसरे की कमियों को दिखाकर उनकी हँसी उड़ाएँ या फिर अपनी कमियों को जगजाहिर कर दें।



उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसते होने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित आत्मकथ्य  से ली गयी हैं जिसके रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रसंग:- कवि ने इस कविता में सपनों के टूटने का वर्ण किया हैं।
व्याख्या:-
कवि का कहना है कि उन्होंने कितने स्वप्न देखे थे, कितनी ही महात्वाकांक्षाएँ पाली थीं। लेकिन सारे सपने जल्दी ही टूट गये। ऐसा लगा कि मुँह तक आने से पहले ही निवाला गिर गया था। उन्होंने जितना कुछ पाने की हसरत पाल रखी थी, उन्हें उतना कभी नहीं मिला। इसलिए उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं कि जीवन की सफलताओं या उपलब्धियों की उज्ज्वल गाथाएँ बता सकें।

जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनि उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित आत्मकथ्य  से ली गयी हैं जिसके रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रसंग:- कवि ने इस कविता में यादों के महत्व का वर्णन किया हैं।
व्याख्या:-
कभी कोई ऐसा भी था जिसके चेहरे को देखकर कवि को प्रेरणा मिलती थी। लेकिन अब उसकी यादें ही बची हुई हैं। अब मैं तो मैं एक थका हुआ राही हूँ जिसका सहारा केवल वो पुरानी यादें हैं।

सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित आत्मकथ्य  से ली गयी हैं जिसके रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रसंग:- कवि ने इस कविता में कहा हैं कि मेरा जीवन कोई खास नहीं घटना नही घटी हैं और ना ही कोई संदेह छिपा हैं इसीलिए मैं अपनी आत्मा कथा नहीं लिख सकता
व्याख्या:-
इसलिए किसी को भी इसका कोई हक नहीं है कि मुझे कुरेद कर मेरे जख्मों को देखे। मेरा जीवन इतना भी सार्थक नहीं कि मैं इसके बारे में बड़ी-बड़ी कहानियाँ सुनाता फिरूँ। इससे अच्छा तो यही होगा कि मैं मौन रहकर दूसरे के बारे में सुनता रहूँ। कवि का कहना है कि उनकी मौन व्यथा थकी हुई है और शायद अभी उचित समय नहीं आया है कि वे अपनी आत्मकथा लिख सकें।

जयशंकर प्रसाद आत्मकथ्य व्याख्या

jayashnkar Prasad Aatmkathy vyakhya

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