कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

Adhigam kya h/अधिगम/अधिगम क्या है/Sikhana kya h/

       अधिगम (Adhigam)

सामान्य अर्थ में अधिगम का अर्थ सीखना अथवा व्यवहार परिवर्तन है। ये व्यवहार परिवर्तन स्थायी तथा अस्थायी दोनों हो सकते है। अधिगम एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। इस समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं। जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही उसके जीवन का विकास होता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाऐं एवं उपक्रियाऐं करता है। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है।

उदाहरणार्थ- एक बालक जलती हुई मोमबत्ती को देखकर खुश होता है और उत्सुकतावश उसकी लौ को पकड़ने की कोशिश करता है। ऐसा करने पर उसका हाथ जल जाता है। परिणामस्वरूप वह हाथ हटा लेता है। अब वह बालक भविष्य में ऐसी गलती पुनः नहीं करेगा। इस प्रकार का अधिगम अनुभव द्वारा सीखना कहलाता है। दैनिक जीवन में भी हम देखते हैं कि एक बालक जन्म लेते ही सब कुछ नहीं सीख लेता। कुछ समय बाद ही वह चलना, फिरना, उठना, बैठना, खेलना, दौड़ना या पेन पकड़ना सीखता है। कहने का अर्थ यह है कि अनुभवों एवं प्रशिक्षण के बाद बालक के व्यवहार मे जो सुधार आता है उसी को अधिगम कहते है। 


                            अधिगम की परिभाषा

                  Adhigam ki paribhasha

बुडवर्थ के अनुसार - ‘‘सीखना विकास की प्रक्रिया है।’’

B.F.स्किनर के अनुसार - ‘‘सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।’’

जे॰पी॰ गिलर्फड के अनुसार - ‘‘व्यवहार के कारण, व्यवहारमें परिवर्तन ही सीखना है।’’

कालविन के अनुसार - ‘‘पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभवों द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।’’

क्रो एंड क्रो के अनुसार - सीखना, आदतों , ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है ।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सीखने के कारण व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है, व्यवहार में यह परिवर्तन बाह्य एवं आंतरिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है। अतः सीखना एक प्रक्रिया है जिसमें अनुभव एवं प्रषिक्षण द्वारा व्यवहार में स्थायी या अस्थाई परिवर्तन दिखाई देता है



                            अधिगम के सिद्धान्त 

         Adhigam ke siddhant

मनोवैज्ञानिक सम्प्रदाय के द्वारा अधिगम की अवधारणा का स्पष्टीकरण करना ही अधिगम का सिद्धान्त कहलाता है। 

अधिगम प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिये मनोवैज्ञानिकों के द्वारा अधिगम के अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किये जाते है। किसी एक सिद्धान्त से मनोवैज्ञानिक संतुष्ट नहीं होते हैं। उन्होंने व्यवहार के अध्ययन से अपनी विधि के अनुरूप अलग – अलग अधिगम के सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं। 

सीखने के सिद्धांत को दो प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है –

व्यवहारवादी सिद्धान्त 

संज्ञानवादी सिद्धान्त 

व्यवहारवादी सिद्धान्त 

व्यवहारवादी सिद्धान्त को सम्बन्धवादी सिद्धान्त भी कहते हैं। इस वर्ग के सिद्धांत वस्तुतः सीखने की प्रक्रिया को उद्दीपक व अनुक्रिया के बीच सम्बन्ध बनाने के रूप में करते हैं। 

जैसे – घण्टी बजने पर कुत्ते के मुँह से लार टपकना। 

इसके अंतर्गत निम्न सिद्धान्त आते हैं –

थार्नडाइक का सीखने का सिद्धान्त 

पावलाव का सम्बद्ध -प्रतिक्रिया सिद्धान्त 

हल का प्रबलन सिद्धान्त 

स्किनर का क्रिया -प्रसूत का सिद्धान्त 

संज्ञानवादी सिद्धान्त 

इस वर्ग से सिद्धान्त के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया में केवल उद्दीपक व अनुक्रिया के बीच सम्बन्ध ही स्थापित नहीं किया जाता है बल्कि इन दोनों के बीच व्यक्ति की व्यक्तिगत रुचियाँ, इच्छाएँ, क्षमता आदि अनेक क्रियाएँ होती हैं। जो अधिगम को प्रभावित करती हैं। 

इसके अन्तर्गत निम्न सिद्धान्त आते हैं – 

अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त 

लेविन का क्षेत्र सिद्धान्त 

सूझ का सिद्धान्त मास्लो का पदानुक्रम सिद्धान्त 

हिलगार्ड ने अपनी पुस्तक Theories Of Learning में 10 – सिद्धान्तों का वर्णन किया है। 

फ्रैंडसेन के अनुसार – “सिद्धान्त न तो ठीक होते हैं और न तो गलत होते है।” 

 

             अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक 

Adhigam ko prabhavit karne waale karak

अभिप्रेणा 

अभ्यास 

बुद्धि 

सीखने का शान्त और अनुकूल वातावरण 

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

शारीरिक व मानसिक थकान  

सीखने की अभिरुचि 



सीखने के नियम (Sikhane me niyam)

अधिगम  के नियम

ई॰एल॰ थार्नडाइक अमेरिका का प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हुआ है जिसने सीखने के कुछ नियमों की खोज की जिन्हें निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है


(क) मुख्य नियम (Primary Laws)                                                          (ब) गौण नियम (Secondary Laws)

1. तत्परता का नियम।                                                                              1. बहु-अनुक्रिया का नियम

2. अभ्यास का नियम                                                                               2.मानसिक स्थिति का नियम

(1) उपयोग का नियम                                                                               3. आंशिक क्रिया का नियम

(2) अनुप्रयोग का नियम                                                                           4. समानता का नियम

3. प्रभाव का नियम                                                                                 5. साहचर्य-परिर्वतन का नियम


Adhigam ke mukhy niyam

अधिगम के मुख्य नियम

सीखने के मुख्य नियम तीन है जो इस प्रकार हैं -


1. तत्परता का नियम - इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए पहले से तैयार रहता है तो वह कार्य उसे आनन्द देता है एवं शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत जब व्यक्ति कार्य को करने के लिए तैयार नहीं रहता या सीखने की इच्छा नहीं होती हैतो वह झुंझला जाता है या क्रोधित होता है व सीखने की गति धीमी होती है।


2. अभ्यास का नियम - इस नियम के अनुसार व्यक्ति जिस क्रिया को बार-बार करता है उस शीघ्र ही सीख जाता है तथा जिस क्रिया को छोड़ देता है या बहुत समय तक नहीं करता उसे वह भूलने लगताहै। जैसे‘- गणित के प्रष्न हल करना, टाइप करना, साइकिल चलाना आदि। इसे उपयोग तथा अनुपयोग का नियम भी कहते हैं।


3. प्रभाव का नियम - इस नियम के अनुसार जीवन में जिस कार्य को करने पर व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है या सुख का या संतोष मिलता है उन्हें वह सीखने का प्रयत्न करता है एवं जिन कार्यों को करने पर व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पडता है उन्हें वह करना छोड़ देता है। इस नियम को सुख तथा दुःख या पुरस्कार तथा दण्ड का नियम भी कहा जाता है।


Sikhane ke gaun niyam

सीखने के गौण नियम

1. बहु अनुक्रिया नियम - इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने किसी नई समस्या के आने पर उसे सुलझाने के लिए वह विभिन्न प्रतिक्रियाओं के हल ढूढने का प्रयत्न करता है। वह प्रतिक्रियायें तब तक करता रहता है जब तक समस्या का सही हल न खोज ले और उसकी समस्यासुलझ नहीं जाती। इससे उसे संतोष मिलता है थार्नडाइक का प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है।


2. मानसिक स्थिति या मनोवृत्ति का नियम - इस नियम के अनुसार जब आदमी सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है तो वह शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति मानसिक रूप से किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार नहीं रहता तो उस कार्य को वह सीख नहीं सकेगा।


3. आंशिक क्रिया का नियम - इस नियम के अनुसार व्यक्ति किसी समस्या को सुलझाने के लिए अनेक क्रियायें प्रयत्न एवं भूल के आधार पर करता है। वह अपनी अंतर्दृष्टि का उपयोग कर आंशिक क्रियाओं की सहायता से समस्या का हल ढूढ़ लेता है।


4. समानता का नियम - इस नियम के अनुसार किसी समस्या के प्रस्तुत होने पर व्यक्ति पूर्व अनुभव या परिस्थितियों में समानता पाये जाने पर उसके अनुभव स्वतः ही स्थानांतरित होकर सीखने में मदद​ करते हैं।


5. साहचर्य परिवर्तन का नियम - इस नियम के अनुसार व्यक्ति प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य परिस्थिति में या सहचारी उद्दीपक वस्तु के प्रति भी करने लगता है। जैसे-कुत्ते के मुह से भोजन सामग्री को देख कर लार टपकरने लगती है। परन्तु कुछ समय के बाद भोजन के बर्तनको ही देख कर लार टपकने लगती है।

No comments:

Post a Comment