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ख़ामोशी कुछ कहती है khamoshi kuchh kahti h

 शीर्षक-ख़ामोशी कुछ कहती है

विधा-कविता
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ख़ामोशी कुछ कहती है,
कभी तो इसको सुना करो
गवाह है दिल ये अंदर अपने
असंख्य जज़्बात रखती है।

अनकही जुबाँ इसकी,
कभी तो तुम समझा करो।

हवा का झोंका साथ ले आया,
गुमसुम सी बातें और स्मृतियों का साया।

मेरे साथ मेरे हक़ में कुछ भी नहीं है अब,
ख़्वाबों की दुनिया और तसव्वुर ही है अब।

ख़ामोशी मेरे सूने से जीवन की बहार ढूंढती है,
ख़ुशबू से महकती समाँ ढूंढती है।

बंज़र मन में तेरे कदमों की आहट ढूंढती है,
बेबसी अब थककर मुस्कुराहट ढूंढती है।


रचनाकार-अतुल पाठक "धैर्य"
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

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