बादल की बौछार
दो बूँद गिरा गया बादल
महका है धरती का आँचल।
बन सर्द पवन लहराई
मिट्टी की महक-महकाई।
सब काम काज रुक गए हैं
बादल के आगे झुक गए हैं।
ममता ने ली है अंगड़ाई
लो सब ने प्यास बुझाई।
खामोश हुआ इंसान जब
पड़ी गर्ज की चमक दिखाई।
पानी-की बौछार चलाके
संगीत में सूर को मिलाके।
गालों को मर्म सहलाएँ
कानों से थरथरी आएँ।
सप्तधनू आकाश में छाया
देने सूक्ष्म श्रेस्ट बधाई।
दो बूँद गिरा गया बादल
महका है धरती का आँचल।
बन सर्द पवन लहराई
मिट्टी की महक-महकाई।
महेश कुमार हरियाणवी
महेंद्रगढ़
9015916317
Twitter: @mk_poems
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