शीर्षक - पिता
हर दर्द की दवा होते हैं, पिता
कभी डाटते हैं, तो कभी फटकारते हैं पिता।
जब देखते है मायूस चेहरा तो गले से लगा लेते है, पिता
जब आते हैं, हमारी आंखों में आसूं तो अपनी आंखो में समां लेते है पिता।
अपना निवाला भी हमें खिलाते हैं, पिता
अपनी ख़ुशी भी हम पर लुटा देते है पिता।
जब कभी - भी चोट लगती है,
तो याद आते है, पिता
मुसीबतों से छुपाने के लिए अपने दिल में छुपा लेते है पिता।
प्यार भरे हाथों से निवाला देकर दुःख - दर्द भुला देते हैं पिता,
समय होता है जब खाने का, तो सामने आ जाते है पिता।
पहले हमें और बाद में खुद खाते हैं पिता,
घर का पूरा भार संभालते हैं पिता,
रिश्तों में प्यार निहारते हैं पिता।
परिवार में संस्कार को जोड़कर रखते है पिता,
शब्दों में बयां नहीं होते पिता के उपकार।
सभी को मिलते है, उन्हीं से संस्कार,
धन्य है पिता, भगवान् का रूप है पिता।
संक्षिप्त परिचय- मनोज कुमार वर्मा।
गांव- बासनी,
तहसील -लक्ष्मणगढ़
जिला - सीकर
राजस्थान
पिन कोड - 332311
मो.9664487170
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