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नागार्जुनय/कविता/यह दंतुरित मुसकान व्यख्या/ Nagarjun /Yah danturit muskan vyakhya

नागार्जुनय यह दंतुरित मुसकान


यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
संदर्भ :-
प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित कविता "यह दंतुरित मुस्कान" से ली गयी हैं जिसके रचनाकार बाबा नागार्जुन हैं।

प्रसंग:-
इस कविता में नागार्जुन जी एक छोटे बच्चे के दाँतो के सौंदर्य का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या:-
इस कविता में कवि एक ऐसे बच्चे की सुंदरता का बखान करता है जिसके अभी एक-दो दाँत ही निकले हैं; अर्थात बच्चा छ: से आठ महीने का है। जब ऐसा बच्चा अपनी मुसकान बिखेरता है तो इससे मुर्दे में भी जान आ जाती है। बच्चे के गाल धू‌ल से सने हुए ऐसे लग रहे हैं जैसे तालाब को छोड़कर कमल का फूल उस झोंपड़ी में खिल गया हो। कवि को लगता है कि बच्चे के स्पर्श को पाकर ही सख्त पत्थर भी पिघलकर पानी बन गया है।



छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित कविता "यह दंतुरित मुस्कान" से ली गयी हैं जिसके रचनाकार बाबा नागार्जुन हैं।
प्रसंग :- कवि नागार्जुन बच्चों के चेहरे के जादू का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या:-
कवि को ऐसा लगता है कि उस बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं। बच्चा कवि को पहचान नहीं पा रहा है और उसे अपलक देख रहा है। कवि उस बच्चे से कहता है कि यदि वह बच्चा इस तरह अपलक देखते-देखते थक गया हो तो उसकी सुविधा के लिए कवि उससे आँखें फेर लेगा।



क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न पाता जान
मैं न पाता जान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित कविता "यह दंतुरित मुस्कान" से ली गयी हैं जिसके रचनाकार बाबा नागार्जुन हैं।
प्रसंग:- कवि छोटे बच्चे के सौंदर्य का वर्णन कर रहे है।
व्याख्या:-
कवि को इस बात का जरा भी अफसोस नहीं है कि बच्चे से पहली बार में उसकी जान पहचान नहीं हो पाई है। लेकिन वह इस बात के लिए उस बच्चे और उसकी माँ का शुक्रिया अदा करना चाहता है कि उनके कारण हि कवि को भी उस बच्चे के सौंदर्य का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। कवि तो उस बच्चे के लिए एक अजनबी है, परदेसी है इसलिए वह खूब समझता है कि उससे उस बच्चे की कोई जान पहचान नहीं है।

उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक ( पुस्तक का नाम) में संकलित कविता "यह दंतुरित मुस्कान" से ली गयी हैं जिसके रचनाकार बाबा नागार्जुन हैं।
प्रसंग:- कवि ने बच्चे के सौंदर्य के वर्णन किया हैं।
व्याख्या:-
बच्चा अपनी माँ की उँगली चूस रहा है तो ऐसा लगता है कि उसकी माँ उसे अमृत का पान करा रही है। इस बीच वह बच्चा कनखियों से कवि को देखता है। जब दोनों की आँखें आमने सामने होती हैं तो कवि को उस बच्चे की सुंदर मुसकान की सुंदरता के दर्शन हो जाते हैं।

नागार्जुन

यह दंतुरित मुस्कान

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