माथे पे बिंदिया
लगी रहने दे मेरे माथे पे बिंदिया ,
रहने दे सिंदूर मांग में मन बसिया ,
जिया तेरा ले गई जंगली चिरैया ,
क्या गुमान उसको ? सात फेरो का बंधन ,
चंद साॅसे है मेरी पीय जीवन का तू खिवैया,
अर्थी का हकदार तू ही बस साॅवरिया ,
तेरी छांव खोजू अपनी मान बढैईया ,
तू चाॅद है आवारा दिन रात लूं बलैया ,
अड़ी मैं खड़ी रास्ते ,
ना जाने दू सौतन के पास तुझे ,
रोकूंगी हर बार चाहे मोड़ तू कलईयां ,
कर ना कर तू प्रीत मुझे ये तेरा कारोबार ,
अंजूरी तेरी प्रीत भरी लुटाऊंगी तुझपे ,
कर सवैया ।।
(चंद साॅसे )
कमल गर्ग
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