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बाबा नागार्जुन की कविता प्रेत का ब्यान pret ka byaan baba nagarjun

Nagarjun ki kvita Pret ka bayaan 

प्रेत का बयान

"ओ रे प्रेत -"
कडककर बोले नरक के मालिक यमराज 
-"सच - सच बतला !
कैसे मरा तू ?
भूख से , अकाल से ?
बुखार कालाजार से ?
पेचिस बदहजमी , प्लेग महामारी से ?
कैसे मरा तू , सच -सच बतला !"
खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़ 
काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढाँचा 
नचाकर लंबे चमचों - सा पंचगुरा हाथ 
रूखी - पतली किट - किट आवाज़ में
प्रेत ने जवाब दिया -

" महाराज !
सच - सच कहूँगा 
झूठ नहीं बोलूँगा 
नागरिक हैं हम स्वाधीन भारत के 
पूर्णिया जिला है , सूबा बिहार के सिवान पर 
थाना धमदाहा ,बस्ती रुपउली
जाति का कायस्थ 
उमर कुछ अधिक पचपन साल की 
पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर था 
-"किन्तु भूख या क्षुधा नाम हो जिसका 
ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको 
सावधान महाराज ,
नाम नहीं लीजिएगा 
हमारे समक्ष फिर कभी भूख का !!"

निकल गया भाप आवेग का 
तदनंतर शांत - स्तंभित स्वर में प्रेत बोला -
"जहाँ तक मेरा अपना सम्बन्ध है 
सुनिए महाराज ,
तनिक भी पीर नहीं 
दुःख नहीं , दुविधा नहीं 
सरलतापूर्वक निकले थे प्राण 
सह न सकी आँत जब पेचिश का हमला .."

सुनकर दहाड़ 
स्वाधीन भारतीय प्राइमरी स्कूल के 
भुखमरे स्वाभिमानी सुशिक्षक प्रेत की 
रह गए निरूत्तर 
महामहिम नर्केश्वर

Kavi nagarjun


 प्रेत का बयान 

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