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नागार्जुन की कविता कालिदास सच-सच बतलाना kalidas sach saach batlana

Kalidas sach sach batana

कविता :- कालिदास सच सच बतलाना

इंदुमती के मृत्यु -शोक से
अज रोया या तुम रोए थे ? 
कालिदास, सच-सच बतलाना! 

शिवजी की तीसरी आँख से 
निकली हुई महाज्वाला में
घृतमिश्रित सूखी समिधा सम
तुमने ही तो दृग धोए थे 
कालिदास, सच-सच बतलाना !

रति रोई या तुम रोए थे? 
वर्षा -ऋतु की स्निग्ध भूमिका 
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का 
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा 
चित्रकूट के सुभग शिखर पर 
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर 
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा,
उन पुष्करावर्त मेघों का 
साथी बनकर उड़ने वाले 
कालिदास, सच-सच बतलाना ! 

पर-पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थक कर औ ' चूर-चूर हो 
अमल-धवलगिरि के शिखरों पर
प्रियवर तुम कब तक सोए थे ? 
कालिदास, सच-सच बतलाना !
रोया यक्ष कि तुम रोए थे ?

      बाबा नागार्जुन

Kavi Nagarjun


Kalidas sach sach batana

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