बुढ़ापा
इति हुई सारी कहानी।आया बुढ़ापा खोया जवानी।।
आंखों से अश्रु झरते आज हैं
व्यर्थ मेरे हुए सब काज हैं
मुझे कोई नही है जानता
सिर्फ वक्त को ही पहचानता
अब न आयेगी वो रवानी।। इति - - - -
पड़ा रहता मैं खाट पर
जिंदगी कट रही है डाट पर
पूँछता न कोई हाल मेरा
रहा केवल दो दिन का बसेरा
कटती कशमकश मे जिंदगानी।। इति - - - - -
याद कर अतीत को रोता है मन
तन क्षीण होता ना रहा धन
बच्चे बुलाने पर ना सुन रहे
हम लाख बार चाहे उनसे कहे
मिलता समय से ना दाना औ पानी।। इति - - - - - -
पुत्र वधुयें आकर डांट जाती
हर दम बुढ़िया उनकी मार खाती
आज वृद्ध को पूछने वाला कौन है
इस वृतांत पर समाज क्यूँ मौन है
छूटे प्राण होगी प्रभु की मेहरबानी।। इति - - - - -
बूढ़ी आंखें पुत्र पथ को देखती है
पूर्व बाते हृदय को सेकती हैं
अस्थियों में ना रहा वो लचकपन
झाँकता स्मृतियों से मेरा बचपन
बारम्बार याद आती बातें पुरानी।। इति - - - - -
स्वरचित मौलिक ।। कविरंग।।
सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)

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