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रूप तेरा Rup tera

।। रूप तेरा।।

न   रहने   वाला  रूप तेरा।
फिर  न  आयेगा   ये  सबेरा।।

वदन   पे   ना   रहेगी  ये लालिमा
होगी  मुख  पे  झुर्रियां व कालिमा
घेरे  पंक्तियां हैं जो  आशिकों   की
निगाहें   घूरती  हैं जो  मालिकों की
चन्द  दिन  का   यहाँ    तेरा  बसेरा।। न रहने - - - -

तनी   भौंहें  बड़ी  आंखें   मिली  हैं
कुमुदनी  चांदनी मे ज्यूं   खिली  है
पीछे खड़ा दिनकर लिए तेज  सारा
जलेगा   वाष्प बनकर रूप तुम्हारा
न    जाने   कब  लगेगा  पुनः  फेरा।। न रहने - - - - -

पूर्ण विकसित कली  इक  तुम  हो
अकड़  इतना  कि अक्ल से गुम हो
पहचान  निजता  का  कर   न पायी
करता    अहं    जग  में  तेरा हँसाई
तेरे    पीछे    डाले   है    काल डेरा।। न रहने - - - - - -

क्षणिक  यवानी  मे   हुई मगरूर हो
केवल   मै   जानता  तूं  बेकसूर  हो
उम्र  ऐसी है  कदम  बलखा ही जाते
कहॉ कोई   पीर  परायी  समझ पाते
निपट   गंवार    ठहरा   हृदय    मेरा।। न रहने - - - -

जो   कल उगा था आज वो खाक है
इस  जहाँ  मे   कौन कितना पाक है
तुझे लेने  चल  पड़ी  यम की सवारी
विराम स्थल पर  करो अपनी तैयारी
अब   तो  छोड़  जग  का तूं  बखेरा।। न रहने - - - - -

स्वरचित मौलिक        ।। कविरंग।।
                            सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)

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