इस लम्बे सफर में साथ तुम्हारे कोई और भी था
हर ठोकर पर सम्भालने वाला कोई और भी था
कितनी ही बरसातों ने कोशिशें की डराने की
सर पर आसमान उठाने वाला कोई और भी था
हर मोड़ पे कोई न कोई छोड़ कर जाता ही रहा
दूर मंज़िल तलक निभाने वाला कोई और भी था
जिसे भी अपना कहा,सबने ही बेगाना कर दिया
नए रिश्तों को संवारने वाला कोई और भी था
कुछ तो खाली रह गया था तुम्हारे खुद के होने में
तुम्हें खुद से ही मिलाने वाला कोई और भी था
सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली
हर ठोकर पर सम्भालने वाला कोई और भी था
कितनी ही बरसातों ने कोशिशें की डराने की
सर पर आसमान उठाने वाला कोई और भी था
हर मोड़ पे कोई न कोई छोड़ कर जाता ही रहा
दूर मंज़िल तलक निभाने वाला कोई और भी था
जिसे भी अपना कहा,सबने ही बेगाना कर दिया
नए रिश्तों को संवारने वाला कोई और भी था
कुछ तो खाली रह गया था तुम्हारे खुद के होने में
तुम्हें खुद से ही मिलाने वाला कोई और भी था
सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली
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