संभल कर चलना मेरे प्यारे
जवानी की इस दहलीज पर प्यारे ,
सोच संभलकर पैर रखना ।
है इस जीवन की राहें पेचिदा,
फूंक - फूंक कर चलना प्यारे ।
सुन ऐ मेरे प्यारे! यौवन के अंधेपन में,
कई तरह के आते है तुफान मन में ।
प्यासे हिरण सा मृगतृष्णा के पीछे
तुम ना चलना प्यारे ।
अभी तो कोमल सा लगता जैसे है फूल
शूल बनेंगी तेरे जीवन की छोटी सी भूल ।
निश्चित कर ले प्यारे तुम
जीवन की राह पर आगे बढ़ना ।
जब तुम जीवन की राह निश्चित कर,
आगे बढ़ेगा तो क्या होगा ?
तेरी गति को रोक सके,
नहीं होगा किसी में बल ।
संभल के रहना प्यारे,
मन से छलेगा केवल मन ।
मन पर अंकुश रखते हुए तुम, निरन्तर चलना ।।
मील का पत्थर साबित जाना प्यारे लोगों के लिए ।
फिर प्रेरणा लेगा हर कोई तुझसे बढ़ने के लिए ।
ऐसा उदाहरण बनना कि तेरे कदमों पे पड़े चलना ।
यही है जीवन का सार प्यारे, सोच संभलकर चलना ।।
-✍🏻 सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
(सहायक उपानिरीक्षक -रक्षा सेवाऐं और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी )
निवास -"श्री हरि विष्णु कृपा भवन "
ग्राम -श्री गर्गवास राजबेरा, पोस्ट ऑफिस -ऊण्डू,
तहसील उपखंड -शिव, जिला -बाड़मेर, राजस्थान ।
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