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सजल गीतिका

सजल गीतिका

ज्ञान के दीप कैसे जलाते नहीं
शारदे माँ को कैसे मनाते नहीं।
हो रहा है व्यथित इस जगत में मनुज,
युगपुरुष को सभी क्यों बुलाते नहीं।
आज अर्जुन खड़े बीच कुरुक्षेत्र में
ज्ञान गीता का माधव सुनाते नहीं।
आज प्रतिशोध की भावना है प्रबल,
व्यक्ति परमार्थ जीवन लगाते नहीं।
गीत कविता कहानी हुई मुक्त अब
भाव बन्धन में अब क्यूँ समाते नहीं।
अपने' भक्तों की' रक्षा करें जो सदा
मात को शीश वो ही झुकाते नहीं।
प्रेम के भाव में  लिप्त रहते सदा
कष्ट की है घड़ी पास आते नही।

गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश

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